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भारत में लघु उद्योग

भारत में लघु उद्योग 

मित्रों जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक विकासशील देश है जिसकी की बढ़ती आबादी को देखते हुए लघु एवं कुटीर उद्योगों का बेरोजगारी को दूर करने में महत्वपूर्ण स्थान रखा गया है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद औद्योगिकरण की बुनियाद  लोहा और कोयला जैसे खनिज संपदाओं पर निर्भर करता है जिसपर अन्य औद्योगिक ढांचे का निर्माण होता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात व्यापार और व्यवसाय में परिवर्तन होने से पाश्चात्य विदेशों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से हमारे संबंध बढे  लेकिन जो लघु और कुटीर उद्योग ग्रामीणों द्वारा अपनाए गए थे वह ज़मीनदोज हो गए।
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों के योगदान को नकारा  नहीं जा सकता है और वर्तमान समय में यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था की गतिशीलता  और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

हम यहां यह जानने का प्रयास करेंगे कि लघु उद्योग होता क्या है ?इसकी परिभाषा क्या है?

लघु उद्योग को परिभाषित करने के लिए 2 क्षेत्रों का चयन किया गया जिनमें निवेश को आधार मानकर  उनको वर्गीकृत किया गया-

1 सेवा क्षेत्र

2 निर्माण क्षेत्र

1 सेवा क्षेत्र

निवेश की राशि की सीमा 

10 लाख से लेकर 2 करोड़ रुपए तक का निवेश कंपनी को स्थापित करने में।

2 निर्माण क्षेत्र

निवेश राशि की सीमा 

25 लाख  रुपए से लेकर 5 करोड़ रुपये तक का निवेश उद्योग लगाने में जमीन और बिल्डिंग को छोड़कर।
सन् 2020 से पूर्व उद्योगों काश्रेणीयन उद्यमी द्वारा उद्योग स्थापित करते समय निवेश की राशि से निर्धारित होती थी। 

किंतु 19 मई 2020 को उद्योगों के श्रेणीयन (अति लघु लघु और मध्यम श्रेणी) की परिभाषा को बदल दिया गया और नई परिभाषा में उद्योगों को उपरोक्त दो भागों में विभाजित ना करके विभाजन तीन श्रेणियों में निवेश और सालाना टर्नओवर के आधार पर किया गया।

सूक्ष्म उद्योग

 
निवेश.    रुपए एक करोड़ तक
टर्नओवर  रुपए 5 करोड़ तक


लघु उद्योग 

निवेश   रुपए एक करोड़ से अधिक 10 करोड़ तक 
टर्नओवर  50 करोड़ तक 

मध्यम उद्योग 


निवेश रुपए एक करोड़ से लेकर 20 करोड़ तक 
टर्नओवर रुपए 50 करोड़ तक

उद्योगों की प्रकृति के आधार पर लघु उद्योगों को न्यूनतम प्रकार वर्गीकृत किया गया है

1 खनन उद्योग
2 बड़े उद्योगों के सहायक उद्योग
3 पोषक उद्योग
4 निर्माण उद्योग
5 सेवक उद्योग

1 खनन उद्योग में खनन कार्य से संबंधित उद्योग आते हैं।

2 सहायक उद्योग में बड़े उद्योगों के लिए मशीन कलपुर्जे बनाने वाले उद्योग आते हैं।

3 पोषक उद्योग के अंतर्गत विशेष प्रकार के उत्पाद बनाने वाले उद्योग आते हैं जो उन उत्पादों और सेवाओं में विशेषता रखते हैं

4  निर्माण उद्योग वस्तुओं के निर्माण से संबंधित होते हैं।

5 सेवक उद्योगों के अंतर्गत यंत्रों के रखरखाव और मरम्मत का कार्य किया जाता है।

लघु उद्योग की विशेषताएं

1 यह एक व्यक्ति द्वारा संचालित होता है साझेदारी फर्म या कंपनी के रूप में होने पर भी या एक साझेदार या निर्देशक द्वारा संचालित होता है.
2 यह स्थानीय स्तर पर संचालित किया जाता है.
3 इसमें निवेश की रकम के साथ-साथ प्राप्त प्रत्यय की अवधि मध्यम उद्योग की तुलना में कम होती है.
4 यह उद्योग श्रम प्रधान होता है.
5 संतुलित क्षेत्रीय विकास में सहायक होता है और गांव से शहरों की ओर पलायन करने वाले श्रम को रोकता है.
6 इसे सरकारी संरक्षण प्राप्त होता है क्योंकि भारत के आर्थिक विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है.
7 इसमें श्रम और प्रबंध के मध्य प्रत्यक्ष संबंध होता है.
8 बड़े उद्योग के पूरब के रूप में यह काम करते हैं बड़े उद्योगों के लिए आवश्यक कलपुर्जे तैयार करते हैं.

लघु उद्योग के उद्देश्य

1 रोजगार अवसरों का सृजन
2 पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित कर उसका विकास करना
3 स्थानीय संसाधनों का उपयोग करना और उन्हें गतिशील बनाना
4 जीवन स्तर में सुधार लाना
5 उपभोक्ताओं के मांग की पूर्ति करना

लघु उद्योगों के महत्व


1 रोजगार सृजन के महत्वपूर्ण स्रोत

लघु उद्योग ग्राम प्रधान होते हैं जिसमें श्रम का निवेश अनुपात अधिक होता है .भारत में पूंजी कम श्रम ज्यादा है इसलिए उद्योग द्वारा सहित रोजगार लाभदायक होते हैं.

2 कम पूंजी द्वारा स्थापित

अन्य उद्योगों की तुलना में इसमें कम पूंजी की आवश्यकता होती है .भारत जैसे देश के लिए कम पूंजी पर आधारित उद्योग की आवश्यकता है.

3 स्वरोजगार का माध्यम

लघु उद्योग स्थापित कर बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है और यह स्वरोजगार का एक शब्द बनता है.

4 आर्थिक सत्ता का विकेंद्रीकरण

इसमें उद्योगों पर स्वामित्व कुछ उद्योगपतियों का नहीं रहकर कई लोगों के हाथों में चला जाता है . इस प्रकार उद्योग केंद्र कितना होकर विकेंद्रीकृत हो जाता है.

5 संतुलित क्षेत्रीय विकास

लघु उद्योगों को पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित करने पर स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार मिलता है और उनका पलायन रुकता है जिससे संतुलित क्षेत्रीय विकास होता है.

6 छोटी बचत ओं को गतिशील करना

लघु उद्योग छोटी वचनों को सृजित कर उनसे अतिरिक्त पूंजी का निर्माण करते हैं.

7 स्वतंत्र रोजगार के अवसर प्रदान करना
 लघु उद्योग स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं इन पर सरकार का नियंत्रण कम होता है अतः किसी व्यक्ति द्वारा एक उद्योग स्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं होती है.

8 कृषि पर आधारित

कृषि पर आधारित लघु उद्योग कृषकों के लिए अतिरिक्त आय का साधन होता है.

9 विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं

 लघु उद्योग के संचालन के लिए किसी विशेष शिक्षा या डिग्री की आवश्यकता नहीं है और ना ही विशेष तकनीकी से संबंधित जानकारी चाहिए इसे कोई भी व्यक्ति स्थापित कर सकता है.

10 विदेशों पर कम निर्भरता

लघु उद्योगों के सही संचालन के लिए कच्चा माल तकनीकी ज्ञान यंत्र पूंजी क्षेत्र आदि के लिए हमें विदेशों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होती है.

लघु उद्योगों की समस्याएं


1 लघु उद्योगों के संचालन में स्वर्ण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन उनके प्रशिक्षण और विकास के कम अवसर के कारण उनसे जितनी अपेक्षा की जाती है वह उतना योगदान नहीं दे पाते जिसके कारण उनकी आदर्श स्थिति नहीं होती श्रमिक अशिक्षित होते हैं और आधुनिक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होते हैं.

2 लघु उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति निरंतर नहीं होने के कारण इस में बाधाएं उत्पन्न होती हैं इसके चलते उनकी वित्तीय स्थिति जो पहले से ही छोटे आकार की होती है और कमजोर हो जाती है और उसकी लागत है बढ़ जाती हैं.

3 लघु उद्योगों को स्थापित करने के लिए स्थापित बैंकिंग संस्थाएं और अन्य वित्तीय संस्थानों के द्वारा पर्याप्त मात्रा में ऋण की सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जाती है जिसकी वजह से ऊंचे ब्याज दरों पर इन उद्योगों का जीवित रहना मुश्किल हो जाता है रियायती दरों पर कुछ संस्थाओं के द्वारा विशेष सुविधाएं दी जाती हैं फिर भी  मध्यस्थों की भूमिका के कारण यह सहज तरीक से उद्यमियों को नहीं मिल पाता है।

4 लघु उद्योगों के पास आधुनिक मशीनों और सामान की 
आपूर्ति की समस्या होती है जिसके चलते इन्हें उत्पादन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इन्हें पुरानी मशीनों पर ही निर्भर करना पड़ता है जिसके कारण उत्पादन प्रक्रिया प्रभावित होती है.

5 अत्यधिक संख्या में छोटे फर्म  का होना

सरकार द्वारा रियायत अनुदान का फायदा उठाने के लिए अत्यधिक संख्या में लघु इकाइयों की स्थापना कर दी जाती है और उस धन का प्रयोग किसी और क्षेत्र में किया जाता है।

6 पुरानी प्रौद्योगिकी

सरकार द्वारा या अन्य संस्थाओं द्वारा प्रौद्योगिकी सहायता न मिलने के कारण लघु उद्योगों के पास आधुनिक टेक्नोलॉजी नहीं होती जिसके चलते इनके किस्म और स्तर में कमी होती है विकास कार्यक्रम इनके खर्ची ले होते हैं और भारतीय और विदेशी लघु उद्यमों के बीच तालमेल स्थापित कर पाना  मुश्किल हो जाता है.
7 अनुप्रयुक्त स्थान

लघु उद्योगों में प्लांट एंड मशीनरी की आवश्यकता होती है लेकिन स्थान की समस्या के कारण या स्थान के चयन में छुट्टियों के कारण अनुपयुक्त स्थान पर उसकी उसको स्थापित कर दिया जाता है जो निकट भविष्य में उनके लिए समस्याएं  पैदा करता है.

8 विपणन सुविधाओं की कमी

लघु आकार के इकाइयों के पास पर्याप्त साधन की कमी होने के चलते और आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण विपणन  में कमी होती है और प्रमाणीकरण का अभाव होता है जिसके चलते इन्हें प्रतिस्पर्धा में कठिनाई का सामना करना पड़ता है.

उपरोक्त समस्याओं के निदान

1 लघु उद्योगों द्वारा अपने श्रमिकों को उचित शिक्षण प्रशिक्षण के द्वारा उनके गुणवत्ता और कौशल को बढ़ाया जाना चाहिए और प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रमों पर वह किया जाना चाहिए.

2 प्रभावी नियोजन द्वारा उत्पादन कार्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए और उसके अनुसार योजनाएं बनाकर उसे क्रमबद्ध तरीके से लागू करना चाहिए.

3 उत्पादन के लिए प्रयुक्त प्लांट और मशीनरी के आधुनिक तरीके को आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहिए.

4 राज्य सरकार के विभिन्न संस्थाओं से राज्य विकास निगम लघु उद्योग निगम राज्य तकनीकी सलाह संगठन इन सभी को आपस में तालमेल स्थापित करते हुए उनके विकास और स्थापना के लिए कार्यरत रहना चाहिए.

5 उद्योग स्थापित करने के बाद में कच्ची सामग्री की नियमित आपूर्ति की व्यवस्था होनी चाहिए

6 उद्योग स्थापित करने के लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था परंपरागत साधनों के अतिरिक्त अन्य वैकल्पिक साधनों द्वारा होनी चाहिए.
 
7लघु इकाइयों के ब्रांडिंग लेबलिंग विपणन की व्यवस्था पर सरकार को ध्यान केंद्रित करना चाहिए और इन वस्तुओं के विपणन के लिए आवश्यक बाजार उपलब्ध कराना चाहिए.

सरकार द्वारा किए जाने वाले उपाय

1 लघु उद्योगों की सहायता के लिए सरकार द्वारा अनेक संस्थाएं स्थापित किए गए हैं जो इस प्रकार हैं
 कुटीर उद्योग बोर्ड 
राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम
 खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड 
केंद्रीय विपणन संस्थान
 जिला उद्योग केंद्र
 क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र 
अखिल भारतीय हस्तकला एवं हथकरघा बोर्ड इत्यादि.

2 लोगों को लाइसेंस और विपणन संबंधित विषयों पर एक ही स्थान पर सुविधाएं प्रदान करने के लिए जिला उद्योग केंद्र स्थापित किए गए हैं जो राज्य के प्रत्येक जिले में स्थित है.


3 लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा अनेक उपाय किए गए हैं जिसमें राज्य की संस्थाएं और बैंकिंग संस्थाओं के अलावा भारत सरकार के कई संस्थाएं कार्यरत हैं राज्य वित्त निगम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सहकारी बैंक सभी भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशन एवं मार्गदर्शन में ऋण गारंटी योजना के माध्यम से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती हैं और उदार दरों पर ऋण देती हैं.

4 उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा लघु उद्योग क्षेत्र स्थापित किए गए हैं जहां पर सरकार द्वारा जमीन मुहैया कराई जाती है और उन्हें स्थापित करने के लिए सारी बुनियादी सुविधाएं दी जाती है. इसके अलावा जो महत्वपूर्ण सुविधाएं हैं वह ऋण प्रदान  करना जो सरल किस्तों में चुकाने होते हैं.

5 लघु और कुटीर उद्योगों को सरकार द्वारा करों में छूट दी गई है जिसके कारण यह रियासतों और लाखों का लाभ उठाकर विकास करते हैं.

6 लघु उद्योग के उत्पादों के वितरण के लिए प्रयासों के अंतर्गत देशभर में कई वाणिज्यिक केंद्र स्थापित किए गए हैं उनके विक्रय को बढ़ावा देने के लिए कुटीर उद्योग वाणिज्य केंद्र भी स्थापित किया गया है

7 सिडबी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य लघु आकार के उद्योगों का संवर्धन, उनका विकास करना है . सिडबी द्वारा देश में  लघु उद्योग के विकास और संवर्धन  कार्यों का संचालन किया जाता है. इसके लिए उसके द्वारा बहुत से कार्यक्रम चलाए जाते हैं जैसे ग्रामीण औद्योगिक कार्यक्रम , उद्योग साधना, महिला विकास निधि योजना, ग्रामीण उद्यमिता विकास कार्यक्रम इत्यादि. 









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