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मौद्रिक नीति और आरबीआई के मौद्रिक नियंत्रण के उपकरण

भारतीय अर्थव्यवस्था में मौद्रिक प्रवाह और उसके  नियंत्रण का अधिकार देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ( RBI)को दिया गया है मौद्रिक और साख नियंत्रण का कार्य आरबीआई अपनी मौद्रिक नीति द्वारा तय करती है यह ब्लॉग आरबीआई के मौद्रिक नियंत्रण के उपकरण से संबंधित है आइए चर्चा करते हैं
मौद्रिक नीति

किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह का नियंत्रण जिस विधि द्वारा किया जाए मौद्रिक नीति कहलाती है। 

मुद्रा के प्रवाह से तात्पर्य मुद्रा की मात्रा से है जो अर्थव्यवस्था में मौजूद करेंसी और साख की मात्रा से संबंधित होता है ।

किसी भी देश के आर्थिक विकास में उस देश के केंद्रीय बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उस देश के अंदर मुद्रा के प्रवाह के नियंत्रण का दायित्व भी उसी देश के केंद्रीय बैंक का होता है।

इसलिए हम कह सकते हैं कि मौद्रिक नीति से तात्पर्य देश के केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाए जाने वाले उन उपायों से है जिनके द्वारा अर्थव्यवस्था में करेंसी और साख की मात्रा को नियंत्रित किया जाता है.

*साख यानी उधार देने का कार्य वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है । इसलिए केंद्रीय बैंक उन बैंकों पर नियंत्रण रखता है और साख पर भी नियंत्रण रखता है जिससे मुद्रा का प्रसार या मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न ना हो।

*साख नियंत्रण के लिए केंद्रीय बैंक आरबीआई द्वारा विभिन्न प्रकार की नीतियां अपनाई जाती हैं
 
1परिमाणात्मक साख नियंत्रण नीति 

 2 चयनात्मक साख नियंत्रण नीति 

1 परिमाणात्मक साथ नियंत्रण नीति

साख नियंत्रण की इस नीति में आरबीआई बैंकों के नकद कोसों पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है जिससे साख नियंत्रण में सहायता मिलती है इसमें बैंक दर ,खुले बाजार की क्रियाएं ,परिवर्तनशील नकद आरक्षण और वैधानिक तरल कोष सम्मिलित होते हैं।

बैंक दर

 *बैंक दर वह दर है जिस पर आरबीआई अन्य बैंकों को अल्पकालीन ऋण देता है ।

 *यह ऋण बैंकों को दिन प्रतिदिन के नकद लेनदेन से संबंधित कार्यों के लिए होता है जिसे बैंक आरबीआई के पास अपनी प्रथम श्रेणी के प्रतिभूतियों को जमानत के रूप में रखकर प्राप्त करते हैं ।

*बैंक दर बढ़ जाने पर बैंकों के पास मुद्रा कम आती है जिससे बाजार में मुद्रा का प्रवाह साख के रूप में कम होता है । इसके विपरीत बैंक दर घट जाने पर बैंकों के पास मुद्रा अधिक आती है जिससे बाजार में मुद्रा का प्रवाह साख के रूप  में बढ़ जाता है.
 
*बैंक दर वह उपकरण है जिसके द्वारा बैंकों के साख नियंत्रण में मदद मिलती है.


खुले बाजार की क्रियाएं

खुले बाजार की क्रियाओं के अंतर्गत आरबीआई सरकारी प्रतिभूतियों का खुले बाजार में क्रय-विक्रय करता है इसके अतिरिक्त प्रथम श्रेणी के बिल और प्रतिज्ञा पत्र का भी प्रयोग करें करता है.
 
*जब आरबीआई इन प्रतिभूतियों को खुले बाजार में  क्रय करता है तो बैंक के पास नगद कोषों में वृद्धि होती है जिससे साख सृजन होता है और जनता के पास रुपया अधिक जाता 
है ।

*इसके विपरीत जब खुले बाजार में आरबीआई प्रतिभूतियों का विक्रय करता है तो बैंकों के पास नकद कोषों में कमी आती है क्योंकि इन प्रतिभूतियों को बैंकों को खरीदना आवश्यक होता है इसका परिणाम बैंकों के नकद कोष के कमी के रूप में होता है जिससे साख की मात्रा कम होती है और लोगों के पास  पैसा कम होता है.

परिवर्तनशील नकद आरक्षण कोष

इसके अंतर्गत बैंक अपने  मांग जमा और सावधि जमा दोनों का एक निश्चित भाग आरबीआई के पास जमा करता है।

 जब कभी आरबीआई को साख को कम करना पड़ता है तो वह नकद आरक्षण कोष को बढ़ा देता है और साख को अधिक करना पड़ता है तो वह नकद आरक्षण कोष को घटा देता है ।

नकद आरक्षण को  3 से 15% के बीच निर्धारित किया जा सकता है।

वैधानिक तरलता अनुपात

 इसके अंतर्गत व्यापारिक बैंकों को अपनी कुल संपत्ति के एक निश्चित भाग को तरल रूप में रखना होता है और यह अनुपात तरलता अनुपात कहलाता है।

*तरलता अनुपात में कमी या वृद्धि से साख सृजन पर प्रभाव पड़ता है। तरलता अनुपात में  वृद्धि का अर्थ है कि बैंकों को अपनी जमा को ऋण के रूप में ना देकर उसे सरकारी और अनुमोदित प्रतिभूतियों में लगाना पड़ता है जिससे साख का सृजन कम होता है और बैंक व्यापार और उद्योग जगत को ऋण और अग्रिम नहीं दे पाते हैं।
2 चयनात्मक साख नियंत्रण नीति

यह साख नियंत्रण की नीति सिर्फ चयनित क्षेत्रों में आरबीआई अपनाती है यानी अर्थव्यवस्था के किसी खास भाग में यदि साख नियंत्रण की आवश्यकता होती है तो उसी क्षेत्र में साख नियंत्रण की नीति अपनायी जाती है।
 

*कुछ विशेष वस्तुओं या प्रतिभूतियों को धरोहर के रूप में रखकर ऋण लेने पर आरबीआई ब्याज की दरों को ऊंची कर देता है । इनमें ऐसी वस्तुएं शामिल होती हैं जिनकी कालाबाजारी या जमाखोरी पर मूल्यों में वृद्धि कर दी जाती है जैसे चीनी ,तेल वनस्पति घी ,गुड़ इत्यादि।

*आरबीआई कृषि से संबंधित फसलों की आपूर्ति कीमतों की प्रवृत्ति के आधार पर अग्रिम की सीमा का  निर्धारण करता है इसके अतिरिक्त कृषि पर आधारित ऋणों की वसूली और उधार देने की सीमा के विस्तार के लिए वाणिज्यिक बैंकों को अनुमति देता है ।

*साख नियंत्रण के अंतर्गत आरबीआई चयनित क्षेत्र के साथ सीमा का निर्धारण करता है जिससे उस क्षेत्र में अति पूंजीकरण की स्थिति ना हो ।

*कुछ अन्य क्षेत्रों में ऋण देने पर प्रतिबंध लगाता है।

*आरबीआई परिपत्रों या सम्मेलन के माध्यम से बैंकों पर नैतिक दबाव बनाता है जो ऋण और अग्रिम में कमी के सुझाव के संबंध में होते हैं। 

*आरबीआई प्रत्यक्ष रूप से किसी वाणिज्यिक बैंक के विशेष लेनदेन की मना -ही कर सकता है।






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