Skip to main content

Capital Market

Capital Markets (पूंजी बाजार )

वित्तीय बाजार का वह भाग जिसमें मध्यम अवधि और दीर्घ अवधि के प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय होता है पूंजी बाजार कहलाता लाता है। 

पूंजी बाजार के माध्यम से सरकार ,निजी निगम अपने दीर्घकालीन और मध्यकालीन पूंजी की व्यवस्था करते हैं इस पूंजी की पूर्ति व्यापारिक बैंक, एलआईसी ,जीआईसी, आईडीबीआई ,आईएफसीआई ,आईसीआईसीआई ,यूटीआई इत्यादि जैसी संस्थाओं द्वारा की जाती है। ये संस्थाएं पूंजी बाजार में प्रतिभूतियों में जनता के पैसे को निवेश करती हैं और इन प्रतिभूतियों के माध्यम से सरकार और निजी निगम औद्योगिक ढांचे को मजबूत करते हैं और उद्योग धंधे स्थापित करते हैं, उत्पादन का कार्य करते हैं। 

मुद्राबाजार और पूंजी बाजार में अंतर

(Difference between money market and capital market)

 *मुद्रा बाजार अल्पकालीन पुरुषों का बाजार होता है जबकि पूंजी बाजार मध्यकालीन और दीर्घकालीन कोसों का बाजार होता है ।

*मुद्रा बाजार में ट्रेजरी बिल जमा प्रमाण पत्र वाणिज्य कागज पत्र आदि का प्रयोग किया जाता है यानी इन्के माध्यम से लेनदेन का कार्य होता है जबकि पूंजी बाजार में अंशु पत्र ऋण पत्र गॉड इत्यादि का प्रयोग किया जाता है 

*मुद्रा बाजार को प्राथमिक बाजार भी कहा जाता है जबकि पूंजी बाजार को द्वितीयक बाजार कहा जाता है।

*मुद्रा बाजार में दलाल के बिना सौदा तय होते हैं जबकि पूंजी बाजार में दलाल द्वारा से सौदा तय किए जाते हैं।

*मुद्रा बाजार में प्रतिभूतियों का मूल्य बड़ा होता है जबकि पूंजी बाजार में प्रतिभूतियों का मूल्य छोटा होता है।

पूंजी बाजार का गठन 

1 श्रेष्ठ प्रतिभूति बाजार

 2 औद्योगिक प्रतिभूति बाजार

 1श्रेष्ठ प्रतिभूति बाजार 

यह पूर्णत सुरक्षित बाजार होता है जिसके पुनर्भूगतान मे कोई जोखिम नहीं होता है। यह सरकारी या अर्ध सरकारी प्रतिभूतियों का बाजार होता है। यह प्रतिभूतियां केंद्र सरकार, राज्य सरकार स्थानीय सरकार, राजकीय विद्युत बोर्ड ,स्वायत्त सार्वजनिक संस्थाएं, सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों की होती हैं। 

 इस बाजार में सरकारी या गैर सरकारी प्रतिभूतियों का लेनदेन होता है यह प्रतिभूतियां पूर्ण रूप से सुरक्षित होती हैं इसीलिए स्वर्ण रेखा किन प्रतिभूतियां कहलाती है ।

सरकारी प्रतिभूतियों में अनेक संस्थाएं सौदा करती हैं क्योंकि नियम अनुसार उन संस्थाओं को अपने कोष का एक निश्चित भाग इन प्रतिभूतियों में निवेश करना पड़ता है। 

 आरबीआई द्वारा खुले बाजार की क्रियाएं सरकारी प्रतिभूतियों को खुले बाजार में खरीदने और बेचने से संबंधित होती हैं जिससे मौद्रिक नियंत्रण अर्थव्यवस्था का होता है।

2 औद्योगिक प्रतिभूति बाजार 

इस बाजार में विभिन्न  उद्योगों की कंपनियों द्वारा नए और पुराने प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय किया जाता है । इन प्रतिभूतियों  का क्रय विक्रय का केंद्र स्टॉक एक्सचेंज होता है । यह सरकार की वित्तीय नीति, आरबीआई की मौद्रिक नीति, राजनीतिक स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय नीतियों द्वारा प्रभावित होता है। 

औद्योगिक प्रतिभूति बाजार को भी दो भागों में बांटा गया है 

क प्राथमिक प्रतिभूति बाजार और 

ख द्वितीयक प्रतिभूति बाजार

क प्राथमिक प्रतिभूति बाजार 

इस बाजार के अंतर्गत कंपनियों द्वारा प्रवर्तन के लिए कोषो की आवश्यकता होती है जिसके लिए वह नए अंश ऋण पत्र या बॉन्डको निर्गमित करते हैं।

ख द्वितीयक बाजार

 इसमें विद्यमान कंपनियों के अंश पत्र और ऋण पत्र का क्रय विक्रय किया जाता है। इन प्रतिभूतियों द्वारा कंपनियां अपने दीर्घकालिन कोषो की पूर्ति करती हैं। इस बाजार में व्यवहार करने वाले विभिन्न मध्यस्थ व्यापारिक बैंक ,दलाल और अन्य संस्थाएं होती हैं।

पूंजी बाजार के उपकरण- सरकारी प्रतिभूतियां, अंश पत्र।

अंशपत्र 

अंकपत्र दो प्रकार के होते हैं समता अंश और पूर्वाधिकार अंश।

समता अंश 

यह उद्योग के वित्त व्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार होते हैं। अधिकतर कंपनियां अपनी पूंजी का अधिकतर भाग इस अंश  को निर्गमित कर प्राप्त करती हैं जिसके माध्यम से यह स्थाई पूंजी की व्यवस्था करती हैं। कंपनी को लाभ होने पर इन अंशो पर लाभांश दिया जाता है और इन अंशो के धारक ही कंपनी के वास्तव में स्वामी होते हैं।

 समता अंशो के प्रकार

 ब्लूचीप अंश

यह अंश उन कंपनियों द्वारा निर्गत किया जाता है जिनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है ।

विकास अंश

 यह उन कंपनियों द्वारा जारी किया जाता है जिनका विकास तेजी से होता है ।

चक्रीय या गैर चक्रीय अंश

 जिन कंपनियों के अंशों में उतार चढ़ाव होते होता है वह चक्रीय अंश कहलाते हैं जैसे सीमेंट, ऑटोमोबाइल, निर्माण कंपनियों के अंश।

 गैर चक्रिय अंश में उतार-चढ़ाव नहीं होता है जैसे बीमा कंपनियों के अंश।

स्वेट शेयर

जो शेयर कंपनी के डायरेक्टर और कर्मचारियों को निशुल्क दिए जाते हैं स्वीट शेयर कहलाते हैं ।

अल्फ शेयर

 वे शेयर जो बाजार में उतार-चढ़ाव के बावजूद अच्छा प्रत्यय देते हैं अल्फा शेयर कहलाते हैं।

 सुरक्षात्मक शेयर 

ह शेयर अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव के बावजूद भी एक निश्चित प्रत्यय देते हैं।


Comments

Popular posts from this blog

उद्यम का प्रवर्तन

भूमिका उद्यमिता और उद्यमी को जानने के पश्चात अब प्रश्न यह उठता है कि उद्यम को स्थापित कैसे किया जाए ? जहां उद्यम स्थापित करने की बात आती है तब विचारों के सृजन से लेकर विभिन्न विचारों में से किसी एक विचार का चयन कर उसको कार्यान्वित रूप देने तक की समस्त क्रिया ही उद्यम की स्थापना से संबंधित होती हैं। हमने पिछले ब्लॉक में उद्यमिता और उद्यम से संबंधित बातों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी ली। इस ब्लॉग में उद्यम की स्थापना और उससे पूर्व की क्रिया- विधियों  के बारे में जानकारी लेंगे । यह क्रियाविधि प्रवर्तन कहलाती है । अब प्रश्न उठता है  "प्रवर्तन क्या है" आइए देखते हैं - प्रवर्तन की परिभाषा  प्रो. ई एस मेड के अनुसार "प्रवर्तन में चार तत्व निहित होते हैं खोज, जांच, एकत्रीकरण और व वित्त."  गुथमैन और डूगल के अनुसार "प्रवर्तन उस विचारधारा के साथ आरंभ होता है जिससे किसी व्यवसाय का विकास किया जाना है और इसका कार्य कब तक चलता रहता है जब तक कि वह व्यवसाय एक चालू संस्था के रूप में अपना कार्य पूर्ण रूप से आरंभ करने के लिए तैयार नहीं हो जाता है."   ...

क्या है औद्योगिक रुग्णता (industrial sickness )

इस ब्लॉग में हम महत्वपूर्ण टॉपिक औद्योगिक रुग्णता के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेंगे तो चलिए देखते हैं औद्योगिक रुग्णता के बारे में- किसी भी देश के विकास का आधार औद्योगिक विकास होता है जो अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करता है । कोयला और लोहा ऐसे दो उद्योग आधारभूत उद्योग हैं जिन पर अन्य उद्योग टिके होते हैं ।देश काल और परिस्थिति के अनुसार उद्योग के स्वरूप में परिवर्तन होते रहते हैं नए उद्योग स्थापित होते हैं पुराने उद्योग समाप्त हो जाते हैं या फिर समय के अनुसार अपने को परिवर्तित कर लेते हैं। औद्योगिक रुग्णता के अंतर्गत औद्योगिक इकाइयां उसी समय परिस्थिति और नवनिर्माण के दौर से गुजरने के क्रम में अपनी पुरानी स्थिति में बने रहते हुए अपने अस्तित्व को बचाने में सफल नहीं हो पाती हैं और रुग्ण  इकाइयों की श्रेणी में आ जाती हैं । यह स्थिति उनकी वर्तमान वर्ष में होती तो है ही साथ ही आने वाले वर्षों में भी इसकी संभावना बनी रहती है। सामान्य अर्थ में इसे ऐसे समझते हैं * ऐसी औद्योगिक इकाई जिसके current assets current liabilities   से कम रहे हैं। *जिसके current liabilities और curren...

उद्यमीय पर्यावरण

दोस्तों पिछले ब्लॉग में हमने उद्यमिता और उद्यमी के बारे में देखा अब उद्यमीय पर्यावरण  के बारे में बात करेंगे जिसके अंतर्गत एक उद्योग स्थापित होता है । किसी भी उद्योग को स्थापित करने के लिए प्रवर्तक के द्वारा यानी वह व्यक्ति जो उद्योग की सोच से लेकर उसको कार्यान्वित करने की स्थिति तक के लिए जिम्मेदार होता है यह काफी महत्वपूर्ण होता है कि उद्योग स्थापित करने के अनुकूल पर्यावरण है या नहीं । इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हम लोग आगे उद्यमीय  पर्यावरण की चर्चा करेंगे चलिए देखते हैं उद्यमीय पर्यावरण के बारे में यह है क्या..  उद्यमीय  पर्यावरण की परिभाषा उद्यमीय पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है उद्यमीय और पर्यावरण.  उद्यमी का अर्थ है उद्यम से संबंधित जबकि पर्यावरण से तात्पर्य है मनुष्य जिस देश काल या परिस्थिति में जन्म लेता है और जीवन यापन करता है. रॉबिंस के अनुसार," पर्यावरण उन संस्थाओं या शक्तियों से बना होता है जो किसी संगठन के कार्य निष्पादन को प्रभावित करती हैं किंतु उस संगठन का उस पर बहुत कम नियंत्रण होता है". जोक एवं गुलिक के अनुसार ,"पर्यावरण में फर्म के ...