Skip to main content

वित्तीय मध्यस्थ (financial intermediary)

पिछले ब्लॉग में हमने वित्तीय प्रणाली के बारे में संक्षिप्त अध्ययन किया था । जिसमें वित्तीय प्रणाली के महत्वपूर्ण घटकों के बारे में चर्चा की गई थी। इस ब्लॉग में हम वित्तीय प्रणाली के महत्वपूर्ण घटक को में से एक वित्तीय मध्यस्थ के बारे में चर्चा करेंगे।


वित्तीय मध्यस्थ

 वित्तीय मध्यस्थ बचतकर्ता और निवेशकों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं । वित्तीय मध्यस्थ में वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक, ऋण समितियां, बीमा कंपनियां और अन्य वित्तीय संस्थाएं शामिल है। वित्तीय मध्यस्थों का मुख्य कार्य प्राथमिक प्रतिभूतियों को द्वितीयक प्रतिभूतियों में बदलना है।

प्राथमिक प्रतिभूतियां

ये प्रतिभूतियों प्रत्यक्ष रूप से जनता को निर्गमित किए जाते हैं इसमें कंपनी जनता से सीधे संपर्क स्थापित करती है।

 द्वितीयक प्रतिभूतियां

जो प्रतिभूतियां वित्तीय मध्यस्थों द्वारा जनता को जारी  की जाती है उनसे जिस कोष का निर्माण होता है उनको विभिन्न कंपनियों के प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है यानी उन कोषो से विभिन्न कंपनियों के शेयर ,बॉन्ड्स, ऋण पत्र का क्रय होता है। 

उदाहरण के लिए जनता द्वारा अपनी बचत से यूटीआई के प्रतिभूतियों को खरीदना प्राथमिक प्रतिभूति का उदाहरण है जबकि जनता से प्राप्त कोषो के द्वारा यूटीआई द्वारा धन का विनियोग अंशऔर ऋणपत्रों में करना यह द्वितीय प्रतिभूति के उदाहरण है।

वित्तीय मध्यस्थों की भूमिका

😊यह बचतों को एकत्रित कर उन्हें गति प्रदान करते हैं।

😊व्यापार के पूंजी निर्माण में मदद करते हैं ।

😊वित्तीय प्रणाली के अंतर्गत माल और सेवाओं के भुगतान के लिए सुविधाजनक तरीके इनके द्वारा प्रदान किए जाते हैं जो डेबिट कार्ड ,क्रेडिट कार्ड या चेक भुगतान के रूप में होते हैं।

😊वित्तीय प्रणाली की तरलता को बनाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।

😊यह निवेशकों को निवेश के अवसर चुनने में मदद करते हैं और संपत्तियों के जोखिम पूर्ण आवंटन में सहायता करते हैं।

वित्तीय मध्यस्थों के कार्य

😊बचतो को इकट्ठा करके उसे उद्योग जगत को और सरकार को फंड्स के रूप मेें प्रदान करते हैं ।

😊सावधि जमा या बीमा पॉलिसी द्वारा फंड्स को प्राप्त करते हैं और मुद्रा बाजार की प्रतिभूतियां खरीदते हैं। इस प्रकार यह कोषो के द्वारा साख सृजन करते हैं।

 😊अंतिम बचतकर्ता और निवेशकों के मध्य यह जोखिम उठाते हैं और उधारकर्ताओं के जोखिम को कम कर देते हैं ।

😊इनके द्वारा नयी संपत्तियों और  दायित्व का निर्माण किया जाता है ।

😊यह ग्राहकों के संपत्ति में यथा बॉन्ड्स, ऋण पत्र को नकद में बदलने के लिए तत्पर रहते हैं । इस प्रकार ये अर्थव्यवस्था में तरलता को बनाए रखने का काम करते हैं ।

😊वित्तीय मध्यस्थों की विद्यमानता के कारण ब्याज दरों में कमी आती है और विनियोग को प्रोत्साहन मिलता है जिससे पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है और आर्थिक विकास प्रोत्साहित होता है।

वित्तीय मध्यस्थों के प्रकार

1 बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ

इसमें बाणिज्य बैंंक सरकारी बैंक और क्षेत्रीय बैंक सम्मिलित होतेे हैं ।
यह प्राथमिक प्रतिभूतियों  को क्रय करतेे हैं और स्वं ही प्रतिभूतियां और मांग जमाएँ प्रदान करते हैं ।
द्वितीय प्रतिभूतियों का निर्माण करते हैं।

विशेषता

*यह  बचतकर्ता से कोष  प्राप्त कर  प्राथमिक प्रतिभूतियों को खरीदते हैं ।

*बचतो को इकट्ठा कर ऋण योग्य कोष उत्पन्न कर ऋण दाताओं की भूमिका निभाते हैं।
*पूंजी बाजार और मुद्रा बाजार में तरलता को बनाए रखते हैं और मुद्रा की मांग की पूर्ति करते हैं।
*संगठित क्षेत्र की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में यह सरकार और अन्य बड़े कारपोरेट को  कोष की प्राप्ति में सहायता करते हैं।

2 गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं 

इन्हें भी दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है संगठित क्षेत्र और गैर संगठित क्षेत्र।

संगठित क्षेत्र में आईडीबीआई ,आईएफसीआई; नाबार्ड आते हैं जबकि एलआईसी, जीआईसी ,यूटीआई ,पोस्ट ऑफिस विशिष्ट संस्थाएं हैं।
इसमें यूटीआई एक नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन है जबकि अन्य दो एलआईसी और जी आई सी बीमा धन जमा करती हैंऔर उसे प्रतिभूति बाजार में निवेश करती हैं।डाकघर छोटी बचत को गतिशील बनाते हैं।





Comments

Popular posts from this blog

उद्यम का प्रवर्तन

भूमिका उद्यमिता और उद्यमी को जानने के पश्चात अब प्रश्न यह उठता है कि उद्यम को स्थापित कैसे किया जाए ? जहां उद्यम स्थापित करने की बात आती है तब विचारों के सृजन से लेकर विभिन्न विचारों में से किसी एक विचार का चयन कर उसको कार्यान्वित रूप देने तक की समस्त क्रिया ही उद्यम की स्थापना से संबंधित होती हैं। हमने पिछले ब्लॉक में उद्यमिता और उद्यम से संबंधित बातों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी ली। इस ब्लॉग में उद्यम की स्थापना और उससे पूर्व की क्रिया- विधियों  के बारे में जानकारी लेंगे । यह क्रियाविधि प्रवर्तन कहलाती है । अब प्रश्न उठता है  "प्रवर्तन क्या है" आइए देखते हैं - प्रवर्तन की परिभाषा  प्रो. ई एस मेड के अनुसार "प्रवर्तन में चार तत्व निहित होते हैं खोज, जांच, एकत्रीकरण और व वित्त."  गुथमैन और डूगल के अनुसार "प्रवर्तन उस विचारधारा के साथ आरंभ होता है जिससे किसी व्यवसाय का विकास किया जाना है और इसका कार्य कब तक चलता रहता है जब तक कि वह व्यवसाय एक चालू संस्था के रूप में अपना कार्य पूर्ण रूप से आरंभ करने के लिए तैयार नहीं हो जाता है."   ...

क्या है औद्योगिक रुग्णता (industrial sickness )

इस ब्लॉग में हम महत्वपूर्ण टॉपिक औद्योगिक रुग्णता के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेंगे तो चलिए देखते हैं औद्योगिक रुग्णता के बारे में- किसी भी देश के विकास का आधार औद्योगिक विकास होता है जो अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करता है । कोयला और लोहा ऐसे दो उद्योग आधारभूत उद्योग हैं जिन पर अन्य उद्योग टिके होते हैं ।देश काल और परिस्थिति के अनुसार उद्योग के स्वरूप में परिवर्तन होते रहते हैं नए उद्योग स्थापित होते हैं पुराने उद्योग समाप्त हो जाते हैं या फिर समय के अनुसार अपने को परिवर्तित कर लेते हैं। औद्योगिक रुग्णता के अंतर्गत औद्योगिक इकाइयां उसी समय परिस्थिति और नवनिर्माण के दौर से गुजरने के क्रम में अपनी पुरानी स्थिति में बने रहते हुए अपने अस्तित्व को बचाने में सफल नहीं हो पाती हैं और रुग्ण  इकाइयों की श्रेणी में आ जाती हैं । यह स्थिति उनकी वर्तमान वर्ष में होती तो है ही साथ ही आने वाले वर्षों में भी इसकी संभावना बनी रहती है। सामान्य अर्थ में इसे ऐसे समझते हैं * ऐसी औद्योगिक इकाई जिसके current assets current liabilities   से कम रहे हैं। *जिसके current liabilities और curren...

उद्यमीय पर्यावरण

दोस्तों पिछले ब्लॉग में हमने उद्यमिता और उद्यमी के बारे में देखा अब उद्यमीय पर्यावरण  के बारे में बात करेंगे जिसके अंतर्गत एक उद्योग स्थापित होता है । किसी भी उद्योग को स्थापित करने के लिए प्रवर्तक के द्वारा यानी वह व्यक्ति जो उद्योग की सोच से लेकर उसको कार्यान्वित करने की स्थिति तक के लिए जिम्मेदार होता है यह काफी महत्वपूर्ण होता है कि उद्योग स्थापित करने के अनुकूल पर्यावरण है या नहीं । इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हम लोग आगे उद्यमीय  पर्यावरण की चर्चा करेंगे चलिए देखते हैं उद्यमीय पर्यावरण के बारे में यह है क्या..  उद्यमीय  पर्यावरण की परिभाषा उद्यमीय पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है उद्यमीय और पर्यावरण.  उद्यमी का अर्थ है उद्यम से संबंधित जबकि पर्यावरण से तात्पर्य है मनुष्य जिस देश काल या परिस्थिति में जन्म लेता है और जीवन यापन करता है. रॉबिंस के अनुसार," पर्यावरण उन संस्थाओं या शक्तियों से बना होता है जो किसी संगठन के कार्य निष्पादन को प्रभावित करती हैं किंतु उस संगठन का उस पर बहुत कम नियंत्रण होता है". जोक एवं गुलिक के अनुसार ,"पर्यावरण में फर्म के ...