पट्टादारी
दो पक्षकारों के मध्य एक संविदा है जिसमें संपत्ति का स्वामी एक निश्चित समय अवधि के लिए अपनी संपत्ति को एक निश्चित किराए के बदले दूसरे पक्षकार को प्रयोग करने का अधिकार देता है।
संपत्ति का स्वामी पट्टादाता और प्रयोग करने वाला पक्षकार पट्टाधारी कहलाता है ।
किराए की राशि मासिक त्रैमासिक छमाही या वार्षिक हो सकती है।
पट्टे की अवधि पूर्ण होने पर संपत्ति को स्वामी को लौटा दिया जाता है या पुनः पट्टे का संविदा कर लिया जाता है।
पट्टेदारी जो पुनः पट्टे के अंतर्गत आती है वह अल्पकाल के लिए होती है ।
दीर्घकालीन पट्टे के संविदा में पट्टाधारी पट्टे पर या तो काय करता है या नए सिरे से पट्टा करने का विकल्प रखता है।
पट्टे के प्रकार
1सेवा पट्टा या परिचालन पट्टा
यह अल्पकालीन पट्टा होता है जिसकी अवधि संपत्ति के जीवनकाल से कम होती है।
संपत्ति के जीवन काल से पट्टे की अवधि कम होने के कारण इससे प्राप्त राशि द्वारा संपत्ति को अपलिखित नहीं किया जा सकता है परिणाम स्वरूप पट्टादता को निवेश की लागत और उस पर प्राप्त प्रत्याय के लिए या तो दोबारा पट्टा का संविदा करना पड़ता है या अपनी संपत्ति को बेचना पड़ता है ।
इस प्रकार पट्टा दाता के लिए यह पट्टा जोखिम भरा होता है जबकि पट्टाधारी के लिए यह उपयुक्त होता है।
सेवा पट्टा का उपयोग कंप्यूटर, गाड़ी, वाहन, डाटा प्रोसेसिंग, संदेश वाहन प्रणालियों के लिए किया जाता है जिसमें रखरखाव के लिए विशेषज्ञता प्राप्त तकनीकी कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
2 वित्तीय पट्टा
यह दीर्घकालीन पट्टा होता है जिसमें निवेश की लागत और
प्रत्याय की रकम संतोषजनक रूप से पट्टादाता को मिल जाती है ।
यह संविदा एक बार होने के बाद इसके समाप्ति के पहले इसे रद्द नहीं किया जा सकता है।
इसमें नवीनीकरण का विकल्प बहुत कम होता है क्योंकि पट्टे की अवधि लंबी होती है ।
इस पट्टे में सामान्यतः संपत्ति के अनुरक्षण बीमा और सेवा के लिए पट्टाधारी दायी होता है।
वीत्तीय पट्टा के स्वरूप या प्रकार
1 बिक्री तथा प्रति मुद्रा
2 प्रत्यक्ष पट्टा देना
3 उत्तोलक युक्त पट्टा
4 सरल पटा या संशोधित पट्टा
5 प्राथमिक एवं द्वितीयक पट्टा
1 बिक्री या प्रति मुद्रा पट्टा
इसके अंतर्गत एक फर्म द्वारा अपनी संपत्ति को बेचा जाता है और क्रेता द्वारा उस संपत्ति को विक्रेता को पट्टे पर देना होता है। इस प्रकार पट्टे के इस स्वरूप द्वारा विक्रेता फर्म को रोकड़ की प्राप्ति हो जाती है और संपत्ति के प्रयोग का अधिकार भी होता है जिसके लिए वह किराया पट्टे का भुगतान करता है। ऐसी कंपनियां कार्यशील पूंजी की कमी के कारण ऐसा काम करती हैं। इसमें बीमा कंपनियां लिज़िंग कंपनियां ,पेंशन फंड, निजी वित्त कंपनियां और अन्य वित्तीय संस्थाएं आती हैं ।
2 प्रत्यक्ष पट्टा देना
इसके अंतर्गत एक फर्म ऐसी संपत्ति के प्रयोग का अधिकार प्राप्त करती है जिसकी वह पहले से स्वामी नहीं होती है प्रत्यक्ष पट्टा में पूर्तिकर्ता या निर्माता या लीजिंग कंपनी के माध्यम से संपत्ति की व्यवस्था की जाती है।
प्रथम स्थिति में निर्माता या पूर्तिकर्ता पट्टादाता की भूमिका निभाता है जबकि द्वितीय स्थिति जिसमें संपत्ति की व्यवस्था लीजिंग कंपनी द्वारा की जाती है पट्टादाता की भूमिका निभाता है।
यह कंपनी निर्माता या पूर्तिकर्ता से संपत्ति के क्रय का अनुबंध करती है और संपत्ति के पट्टे के लिए पट्टादाता के साथ अनुबंध करती है।
3 सरल पटा या संशोधित पट्टा
सरल पट्टा के अंतर्गत कंपनी के प्रत्याशित जीवन काल में ही संभवतः किराया चुकाने की अपेक्षा की जाती है जबकि संशोधित पट्टे के अंतर्गत पट्टाधारी के अनेक विकल्प होते हैं वह संपत्ति को क्रय कर सकता है या उसे वापस कर पट्टा समाप्त भी कर सकता है।।
4 प्राथमिक एवं द्वितीयक पट्टा
प्राथमिक पट्टे के अंतर्गत पट्टा किराया इस प्रकार से तय किया जाता है कि पट्टे के प्रारंभिक अवधि में ही संपत्ति की लागत और अपेक्षित लाभ प्राप्त हो जाता है और अंतिम अवधि में नाम मात्र का किराया दिया जाता है। दूसरे शब्दों में प्राथमिक अवधि में किराया द्वितीयक अवधि के किराए से अधिक होता है ।
5 उत्तोलक युक्तपट्टा
इस पट्टे के अंतर्गत पट्टादाता संपत्ति को ऋण द्वारा प्राप्त करता है और उसे पट्टे पर किराए के रूप में देता है।
पट्टे की संपत्ति दिए गए ऋण के रूप मोर्गेज रखी जाती है और पट्टे से प्राप्त राशि द्वारा ऋण का भुगतान किया जाता है। इस प्रकार पट्टादार ऋणी के साथ-साथ स्वामी दोनों की भूमिका निभाता है।
पट्टा और किराया क्रय में अंतर
1 पट्टे में स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं होता है जबकि किराया क्रय में स्वामित्व का हस्तांतरण होता है।
2 पट्टे में पूरा किराया कर में कटौती के रूप में दिखाया जाता है जबकि किराया क्रय में केवल ब्याज को घटाया जाता है ।
3 पट्टा में पट्टेदार द्वारा दावा नहीं किया जा सकता है संपत्ति को लेकर जबकि किराया क्रय में मूल्यह्रास और अन्य भत्ते को लेकर दावा किया जा सकता है।
4 पट्टे में अवशिष्ट मूल्य को पट्टादारद्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है जबकि किराया क्रय में पूरे किस्त के भुगतान के बाद संपत्ति के विशिष्ट मूल्य को प्राप्त किया जा सकता है।
पट्टा दारी और किराया क्रय पद्धति में संक्षिप्त अंतर के बाद हम किराया क्रय की संक्षिप्त जानकारी लेंगे
किराया क्रय
यह संपत्ति क्रय की ऐसी विधि होती है जिसमें संपत्ति को तत्काल क्रेता को विक्रेता द्वारा हस्तांतरित किया जाता है उसके स्वामित्व को नहीं जब तक की भुगतान किस्तों की समाप्ति नहीं हो जाती है।
इस प्रकार इसकी विशेषताएं निम्न है
1 वस्तु को विक्रेता को तत्काल हस्तांतरित कर दिया जाता है ।
2वस्तु की लागत का भुगतान क्रेता द्वारा किस्तों में किया जाता है ।
3 किस्तों की अंतिम राशि देते ही विक्रेता द्वारा वस्तु का स्वामित्व हस्तांतरित कर दिया जाता है ।
4 किसी किस्त के बकाया रहने पर विक्रेता वस्तु को वापस ले सकता है और
5 जितनी क़िस्तों को भुगतान पहले किया जा चुका है उसे संपत्ति का किराया भाड़ा समझा जा सकता है।
पट्टाधारी को पट्टा देने के लाभ
1 पट्टादारी पट्टा धारक को यह अवसर देता है कि वह बिना संपत्ति को क्रय किए उसका प्रयोग कर सकता है।
2 पट्टे पर संपत्ति लेकर कार्य करने में संपत्ति के क्रय व्यवसाय में पट्टे पर संपत्ति लेकर व्यवसाय में उसकी स्थापना ऋनों के जोखिम से पट्टाधारी बचता है।
3 आधुनिक तकनीकों में तेजी से परिवर्तन के कारण संपत्ति के ऑपरेशन का जोखिम कम होता है और पट्टा धारक के लिए यह लाभप्रद होता है।
4 बिक्री और पुनः उस संपत्ति को पट्टा पर लेने के कारण पट्टाधारक अपनी नकदी स्थिति को सुधारने योग्य हो जाता है ।
5 पट्टा एक प्रकार का वित्तीय समझौता होता है जिसका उल्लेख तो लेखांकन दृष्टि से होता है आर्थिक चिट्ठे में पट्टे दार के एक बोझ के रूप में होता है लेकिन संपत्ति के प्रयोग को गुप्त करके वह फर्म के ऋण द्वारा पूंजी निर्माण को प्रभावित नहीं करता।
6 पट्टा किराया कर योग्य लाभों में सहायक होता है और पट्टा दाता को कर दायित्व में कमी करता है और पट्टा धारी के कर देनदारीयों को भी घटाता है।
7 सेवा पट्टा या संचालन पट्टा पट्टेधारी को इस योग्य बनाता है कि पट्टा समाप्त कर दिया जाए। स्थिर संपत्ति को यह वित्त प्रदान करने का एक बहुत सुविधाजनक और लचीला तरीका है।
8 पट्टे के अनुबंध में डिस्पोजल के विक्रय का कोई अनुबंध नहीं होता है ।
9 पट्टा समझौता के अंतर्गत यदि संपत्ति के रखरखाव का प्रवधान पट्टा दाता का हो तो पट्टा धारी को प्रशासनिक और रखरखाव के खर्च बसते हैं ।
हानियां
1पट्टा धारी संपत्ति का मालिक नहीं है इसीलिए वह संपत्ति में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है ।
2 संपत्ति के स्वामित्व के कुछ भाग कुछ लाभ होते हैं जैसे ह्रास और निवेश जिनसे पट्टाधारी वंचित रहता है ।
3 यदि पट्टा धारी पट्टे का समापन समय से पहले करता है तो उसे पेनल्टी देना पड़ता है ।
4 पट्टा धारी संपत्ति के अशिष्ट मूल्य से वंचित रहता है।
पट्टादाता को पट्टे से लाभ
1 कर दायित्व में कमी आती है
2 पूंजी की लागत और उस पर उचित प्रत्यय प्राप्त होता है ।
3 पट्टे पर प्राप्त लागत और लाभ अन्य परियोजनाओं की अपेक्षा तेजी से लाभ देते हैं ।
4 लीजिंग कंपनियों द्वारा संपत्ति तरह के समझौते से पट्टादाता लाभ की स्थिति में होता है ।
हानियां
1 पट्टादाता को उच्च प्रचलन का जोखिम उठाना पड़ता है ।
2 पट्टादाता को वर्तमान समय में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है ।
3 मुद्रास्फीति के कारण संपत्ति के मूल्य में कमी होती है इसके बावजूद भी पटादाता को पिछली लागत पर आधारित स्थिर किराया ही मिलता है।
4 पट्टा व्यापार में जो निश्चित समय अंतराल पर किराए की राशि का भुगतान प्राप्त होता है उस राशि के प्रवाह में बाधाएं आती हैं
5 पट्टा दाता को संपत्ति की लागत को प्राप्त करने में लंबा समय लग जाता है जो पट्टा किराए के रूप में प्राप्त होता है।
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