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Mutual funds पारस्परिक निधियां

पारस्परिक निधि Mutual fund

पारस्परिक निधि एक संस्था है जो वित्तीय मध्यस्थ की भूमिका निभाता है ।यह जनता के बचत को इकट्ठा कर कंपनियों के विभिन्न प्रतिभूतियों में इस प्रकार विनियोग करता है कि निवेशक को लगातार रिटर्न मिलता रहे और जोखिम भी कम हो ।
SEBIअधिनियम 1996 के अनुसार ,

"पारस्परिक निधि एक कोष है जो ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया जाता है ताकि वह जनता को इकाइयों को बेचकर मुद्रा अर्जित कर सके।
वह एक या एक से ज्यादा स्कीमों के प्रतिभूतियों में  विनियोग करें जिसमें मुद्रा बाजार भी शामिल है। "

भारत में सबसे पहले 1964 में यूटीआई द्वारा पारस्परिक निधि का काम शुरू किया गया। पारस्परिक निधि को विनियोग ट्रस्ट, बनियोग कंपनी के रूप में भी जाना जाता है। इसे यूएसए में विनियोग ट्रस्ट कहा जाता है। निवेशकों के जरूरत के हिसाब से पारस्परिक निधियों को पांच भागों में बांटा गया है

 1 स्वामित्व के आधार पर 

इसमें सार्वजनिक क्षेत्र की पारस्परिक निधियां और निजी क्षेत्र की पारस्परिक निधियां शामिल होती हैं ।

2 कार्य योजना के अनुसार 

इसमें खुली अंतिम योजना ,बंद अंतिम योजना और अंतर योजना शामिल है ।

3 पोर्टफोलियो के अनुसार 

इसमें आय कोष ,वृद्धि कोष, परिवर्तन विरोधी कोष, समता कोष, बांड कोष, विशिष्ट कोष ,उत्तोलक कोष, कर निर्धारण कोष, इंडेक्स फंड ,मुद्रा बाजार की पारस्परिक निधियां शामिल होती हैं। 

4 स्थापना के अनुसार 

इसमें घरेलू कोष औरऑफ शोर कोष शामिल है ।

5 बाजार पूंजीकरण के अनुसार

बाजार पूंजीकरण के अनुसार इसे तीन भागों में विभक्त किया जाता है लघु ,मध्यम और वृहद पूंजी वाले पारस्परिक निधियां।

पारस्परिक निधि के लाभ 

1 विभिन्न निवेशकों द्वारा जुटाए गए धन द्वारा पारस्परिक निधि प्रबंधक विभिन्न प्रतिभूतियों में इस प्रकार धन का विनियोग करते हैं जिससे जोखिम कई हिस्सों में बंटकर कम हो जाता है और उचित रिटर्न की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है।

 २ छोटे बचतकर्ता है द्वारा पारस्परिक निधि में प्रयोग किया जाता है। पारस्परिक निधि के प्रबंधक बाजार विश्लेषक होते हैं जो विभिन्न प्रतिभूतियों की स्थिति को अच्छी तरह से जानते हैं उन प्रतिभूतियों में ही इन बचतों का निवेश इनके द्वारा किया जाता है। 

3 इनका लाभ यह है कि इस योजना में विनियोग करने पर जल्दी ही प्रतिभूतियों को नकद में बदला जा सकता है।

 4 इसमें अन्य प्रतिभूतियों की अपेक्षा जोखिम कम होता है ।

5 कई ऐसी योजनाएं हैं  जिसमें  पारस्परिक निधियों में ज्यादा पैमाने पर विनियोगकरनेपर बड़े पैमाने की बचत होती है जिससे लागत कम होता है और लाभ प्राप्त होता है ।

6 पारस्परिक निधि विनियोग लचीला होता है और जरूरत के अनुसार विनियोग किए गए राशि को निकाला जा सकता है।

7 सेबी द्वारा इसे सुरक्षा प्रदान की जाती है।

8 कुछ पारस्परिक निधियों में निवेश करने पर कर से राहत भी मिलती है।

भारत में पारस्परिक निधियां

भारत में पारस्परिक निधियों का विकास तीन चरणों में हुआ
 प्रथम चरण 1964 से 1987 तक का था जिसमें यूटीआई ही अकेला था। 
1987 में बैंकिंग विनियम अधिनियम द्वारा संशोधन करके भारत सरकार ने वाणिज्य बैंकों को पारस्परिक निधि शुरू करने की आज्ञा दे दी है।
वाणिज्यिक बैंकों द्वारा पारस्परिक निधि शुरू कर दिए जाने से हर प्रकार के समाज के बच्चों से पैसा इकट्ठा किया जाने लगा।
 एसबीआई ने भी 1987 में ही इसकी शुरुआत की। पीएनबी ने 1990 में ,एलआईसी ने 1989 में और जीआईसी ने 1990 में ही पारस्परिक निधि की शुरुआत की थी ।
कुल 31 पारस्परिक निधियों की शुरुआत यूटीआई को छोड़कर 1993 तक हुई जिसमें 10 सार्वजनिक समूह के और एक प्राइवेट क्षेत्र के थे।
1993 के बाद प्राइवेट संस्थाओं द्वारा पारस्परिक निधियों में प्रवेश किया गया ।
वर्तमान में पारस्परिक निधियोंके संपत्ति का 50% हिस्सेदारी इन्हीं संस्थाओं की है।

भारत में पारस्परिक निधियों की समस्याएं 

1 पारस्परिक निधियों में निवेश करने वाले जब किसी निधि से बाहर निकलना चाहते हैं तो उनके बाहर निकलने का रास्ता साफ नहीं होता बुरी डिलीवरी कई प्रकार की समस्याएं खड़ी कर देती है 

2 निवेशकों को आवश्यकता के मुताबिक पारस्परिक निधियों की कमी है। 

3 इन नदियों पर शोध की कमी के चलते इनके शोध के लिए वाहे स्रोतों पर निर्भर करना पड़ता है इस प्रकार पर्याप्त विकास के लिए यह आवश्यक है कि शोध एवं विकास पर भारत सरकार द्वारा या अन्य भारतीय संस्थाओं द्वारा मुद्रा खर्च की जाए ।

4 पारस्परिक निधियों द्वारा होने वाली हानि रक्षा की गारंटी नहीं दी जाती इसका कारण इसमें जोखिम होता है। 

5 इसमें विनियोगकों की शिकायतों का शीघ्र निपटारा करने में देर होती है ।

6जोखिम प्रबंध में कमी के कारण अपेक्षित रिटर्न  बनियोगर्को को मिल नहीं पाता।

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