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अभिगोपन

 अभिगोपन  वित्तीय  मध्यस्थों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा है जिसमें बैंक, इंश्योरेंस कंपनी और निवेश गृह शामिल होते हैं. 

यह क्षति या वित्तीय हानि की स्थिति में क्षतिपूर्ति के भुगतान की गारंटी लेते हैं और इस प्रकार की गारंटी द्वारा वित्तीय जोखिम के दायित्व को स्वीकार करते हैं.
 वह व्यक्ति या संस्था जो अभीगोपन का कार्य करते हैं अभीगोपक कहलाते हैं. 

अभिगोपन निम्न परिस्थितियों में उत्पन्न होता है यथा इंश्योरेंस ,अंशों के पब्लिक निर्गमन में, बैंक द्वारा मुद्रा उधार देने पर.

अभिगोपन के दौरान अभीगोपक इस बात पर सहमत होता है कि वह प्राथमिक बाजार में जो प्रतिभूति  विक्रय के लिए उपलब्ध होंगी उसका एक न्यूनतम  भाग  क्रय करेगा.

अभिगोपन के संविदा के अंतर्गत अभिगोपक  एक निश्चित कमीशन भी प्राप्त करता है.
एक सार्वजनिक कंपनी को व्यापार करने का अधिकार उस समय तक प्राप्त नहीं हो सकता है जब तक कि कंपनी द्वारा निर्गमित अंशो के कम से कम 90% भाग पर जनता से आवेदन प्राप्त नहीं हो जाते, ऐसे निम्नतम राशि को न्यूनतम अभीदान कहते हैं.

ख्याति प्राप्त कंपनी की दशा में यह जोखिम होता है कि न्यूनतम अभिदान के बराबर राशि के लिए आवेदन प्राप्त होंगे या नहीं.नई कंपनी की दशा में  यह जोखिम और बढ़ जाता है. ऐसी दशा में इस बात की आवश्यकता होती है कि कोई व्यक्ति या संस्था इसकी जिम्मेदारी ले कि जनता द्वारा न्यूनतम अभिदान के बराबर अंशों के आवेदन न करने पर वह शेष अंशो  के लिए आवेदन करेगा.

 अंशो का अभिगोपन इसलिए भी आवश्यक है कि यदि एक कंपनी न्यूनतम अभिदान की राशि प्राप्त नहीं करेगी तो इसे व्यापार करने का प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं होगा.

 भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार अंशों की दशा में निर्गमन मूल्य पर 5% और ऋण पत्रों की दशा में निर्गमन मूल्य पर 2.5% अभिगोपन कमीशन निर्धारित है.
 अभिगोपन के स्वरूप 

1 फर्म अभिगोपन

 इसके अंतर्गत अंडरराइटर फर्म की प्रतिभूतियों को स्वयं एक निश्चित सीमा तक लेता है इन प्रतिभूतियों के आवेदन में ऐसी प्रतिभूतियां भी शामिल होती हैं जिन पर आवेदन नहीं किया गया .
इस अभिगोपन के अंतर्गत अभिगोपक निर्धारित संख्या तक प्रतिभूतियों का अभिगोपन करता है जहां इन पर आवेदन किया गया है या आवश्यकता से अधिक आवेदन प्राप्त हुआ है. यह अभिगोपन निवेशकों में विश्वास पैदा करता है 

2 आंशिक अभिगोपन 

इसके अंतर्गत पब्लिक इश्यू के एक भाग के अभिगोपन की गारंटी अभीगोपक द्वारा   दी जाती है जिसमें अभीगोपक  का दायित्व अनअभियाचित  भाग तक सीमित होता है.

3 उप अभिगोपन 

अभिगोपन के दौरान  अभिगोपक अपने जोखिम को कम करने के लिए जब अन्य अभिगोपकों से अनुबंध करता है तो वह अनुबंध उप अभिगोपन कहलाता है. इसमें प्रतिभूतियों को निर्गमित करने वाली कंपनी के साथ अभिगोपन का कोई ठहराव नहीं होता है.

4 संयुक्त अभिगोपन 

कंपनी जब नए इशु प्राथमिक बाजार में लाती है तो ज्यादा जोखिम को देखते हुए विभिन्न अभीगोपिक से अनुबंध करती है .प्रत्येक अभीगोपक का जोखिम उसके द्वारा लिए गए गारंटी तक सीमित होता है. यह अनुबंध संयुक्त अभिगोपन कहलाता है.

5 संघीय अभिगोपन 

इसमें विभिन्न अभिगोपन फर्मों द्वारा मिलकर अंशों या ऋण पत्रों के निर्गमन में जोखिम की गारंटी लेने के लिए आपस में अनुबंध किया जाता है. यह मिलकर आपस में सिंडिकेट अभिगोपन कहलाती हैं .
इसमें अभिगोपक  फर्मों द्वारा दो प्रकार का अनुबंध किया जाता है 
एक जो अभिगोपक फर्म निर्गमन करने वाली कंपनी के साथ करते हैं और दूसरा अभिगोपन फर्म दूसरे अभिगोपक फर्म के साथ करते हैं.

6 पूर्ण अभिगोपन 

इसमें अभिगोपक जनता द्वारा अभिदान ना किए जाने की दशा में जनता को प्रस्तावित संपूर्ण अंशु ऋण पत्रों को खरीदने की गारंटी देता है.

अभिगोपन की आवश्यकता 

पहले से विद्यमान कंपनी हो या नई कंपनी उन्हें पूंजी की आवश्यकता होती है पूंजी की भरपाई पूंजी बाजार द्वारा सरलता से प्राप्त करने के लिए अभिगोपन की आवश्यकता होती है .
अभिगोपन जनत को प्रतिभूतियों के क्रय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिसमें जोखिम कम होता है . 
अभीगोपन प्रतिभूतियों के निर्गमन द्वारा पूंजी प्राप्त करने का सबसे सुरक्षित तरीका है.




    
 


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