Skip to main content

औद्योगिक इकाइयों का स्थानीयकरण

औद्योगिक इकाइयों के स्थानीयकरण का अर्थ 
एक उद्यम के स्थानीयकरण से आशय औद्योगिक इकाइयों के किसी विशेष स्थान अथवा क्षेत्र की ओर आकर्षित एवं केंद्रित होने से है। यह वह स्थान या क्षेत्र है जहां पर औद्योगिक उत्पादन के विभिन्न साधन सुलभता से उपलब्ध होते हैं। उदाहरण के लिए भारत का सूती वस्त्र उद्योग मुंबई और अहमदाबाद में ही केंद्रित है क्योंकि वहां पर अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा सूती वस्त्र उत्पादन के विभिन्न साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
एक उद्यम के स्थानीयकरण की परिभाषा

प्रोफ़ेसर डी एच रॉबर्टसन के अनुसार
"विशेष क्षेत्र के उद्योगों के आकर्षित होने केंद्रित होने तथा पनपने की प्रवृत्ति को ही एक उद्यम का स्थानीयकरण करते हैं ।" 

डॉक्टर पीएस लोकनाथन के अनुसार 
"एक उद्यम के स्थानीयकरण से अभिप्राय विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों के केंद्रीय करण से है जो अंतरराष्ट्रीय पहलू से क्षेत्रीय श्रम विभाजन का लाता है।"
 प्रोफेसर सुबीन के अनुसार " आदर्श उद्यम का स्थानीयकरण वही है जो वस्तु या सेवा के उत्पादन एवं वितरण की न्यूनतम प्रतीक आई लागत को संभव बनाता है" 

एस्प्रिनगरल एवं लेंस वर्ग के अनुसार "एक उद्यम का स्थानीयकरण प्राय: विरोधी सामाजिक ,आर्थिक, सरकारी एवं भौगोलिक कारणों के बीच तालमेल का परिणाम है।

 निष्कर्ष 

किसी क्षेत्र अथवा स्थान विशेष पर उद्योगों के आकर्षित होने ,केंद्रित होने एवं बढ़ते जाने की प्रवृत्ति को एक उद्यम का स्थानीयकरण कहते हैं।
एक उद्योग को प्रभावित करने वाले दो घटक प्राथमिक घटक और गौंण घटक होते हैं ।

प्राथमिक घटक 

इसमें उद्योगों के प्रादेशिक अथवा क्षेत्रीय वितरण प्रभाव डालते हैं इन्हें प्रादेशिक कारण भी कहा जाता है। इसमें कच्चे माल की आपूर्ति ,बाजारों से उद्योग की निकटता, श्रम की उपलब्धता, शक्ति स्रोतों की उपलब्धता यातायात और संदेश वाहन के साधनों की निकटता, वित्त की उपलब्धता आते हैं।

गौण कारण या घटक 

यह वे घटक होते हैं जो कि उद्योगों के पुन: वितरण पर केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण कृतियों द्वारा प्रभाव डालते हैं। इसके अंतर्गत राजकीय नियम, प्राकृतिक साधन और जलवायु संबंधी सुविधाएं ,प्रतियोगी उद्योग, पूरक उद्योग और व्यक्तिगत घटक शामिल होते हैं। यहां पूरक उद्योग का अर्थ है ऐसे उद्योग जिन पर मुख्य उद्योग अपने सामग्री के लिए निर्भर करता है।

उद्योग के स्थानीयकरण के महत्त्व या लाभ 

1 पूंजी विनियोग में कमी 
उद्योग का स्थान निर्धारण पूंजी  के विनियोग में पर्याप्त कमी करता है क्योंकि कच्चे माल की आपूर्ति और ईंधन की आपूर्ति कम लागत पर ही उस स्थान पर प्राप्त हो जाती है.
 
2 साधनों का अनुकूलतम उपयोग 
आदर्श स्थान निर्धारित होने पर साधनों का अनुकूलतम उपयोग संभव हो जाता है.

3 संचालन व्यय में कमी 
उद्योग की स्थापना से कच्चा माल, परिवहन, श्रम ,इंधन उपकरण, मरम्मत ,सामग्री आदि की सुविधा समीप ही उपलब्ध हो जाती है. परिणास्वरूप संचालन व्यय में कमी आती है.
 
4 लाभ में वृद्धि 
सभी प्रकार की लागतो में कमी और कुशल उत्पादन के कारण प्रति इकाई लागत में कमी आती है जिससे लाभ की मात्रा में वृद्धि होने की संभावना रहती है.
 
5श्रम की उपलब्धता 
एक उद्योग के स्थानीयकरण में कुशल श्रम की उपलब्धता का महत्वपूर्ण स्थान होता है दूर-दूर के श्रमिक ऐसे स्थानों पर आकर्षित होते हैं ।

6 अनुसंधान सुविधाओं का विकास 
कोई उद्योग जब एक ही स्थान पर स्थापित होते हैं तो यह मिलकर संयुक्त रूप से अनुसंधानसाला की स्थापना कर लेते हैं जहां औद्योगिक अनुसंधान में कमी हो जाती है।
 
7 संतुलित क्षेत्रीय विकास 
औद्योगिक स्थान सरकारी नीतियों के अनुरूप होने पर देश में संतुलिविकास को बल मिलता है और पिछड़े क्षेत्रों में विकास होता है । उद्योग के एक ही स्थान पर स्थापित हो जाने से उस स्थान की ख्याति बढ़ जाती है ।उद्योग के नाम से माल का विक्रय होने लगता है ।जैसे अलीगढ़ के ताले,आगरा के चमड़े के जूते इत्यादि 

8 सुरक्षा में वृद्धि 
आदर्श स्थान होने पर वहां बाढ़ ,अग्नि, विदेशी ,आक्रमण चोरी, डकैती आदि से सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की जाती है। यहां बीमा कंपनियां भी उन्हें बीमा की सुरक्षा प्रदान करती है।

Comments

Popular posts from this blog

उद्यम का प्रवर्तन

भूमिका उद्यमिता और उद्यमी को जानने के पश्चात अब प्रश्न यह उठता है कि उद्यम को स्थापित कैसे किया जाए ? जहां उद्यम स्थापित करने की बात आती है तब विचारों के सृजन से लेकर विभिन्न विचारों में से किसी एक विचार का चयन कर उसको कार्यान्वित रूप देने तक की समस्त क्रिया ही उद्यम की स्थापना से संबंधित होती हैं। हमने पिछले ब्लॉक में उद्यमिता और उद्यम से संबंधित बातों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी ली। इस ब्लॉग में उद्यम की स्थापना और उससे पूर्व की क्रिया- विधियों  के बारे में जानकारी लेंगे । यह क्रियाविधि प्रवर्तन कहलाती है । अब प्रश्न उठता है  "प्रवर्तन क्या है" आइए देखते हैं - प्रवर्तन की परिभाषा  प्रो. ई एस मेड के अनुसार "प्रवर्तन में चार तत्व निहित होते हैं खोज, जांच, एकत्रीकरण और व वित्त."  गुथमैन और डूगल के अनुसार "प्रवर्तन उस विचारधारा के साथ आरंभ होता है जिससे किसी व्यवसाय का विकास किया जाना है और इसका कार्य कब तक चलता रहता है जब तक कि वह व्यवसाय एक चालू संस्था के रूप में अपना कार्य पूर्ण रूप से आरंभ करने के लिए तैयार नहीं हो जाता है."   ...

क्या है औद्योगिक रुग्णता (industrial sickness )

इस ब्लॉग में हम महत्वपूर्ण टॉपिक औद्योगिक रुग्णता के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेंगे तो चलिए देखते हैं औद्योगिक रुग्णता के बारे में- किसी भी देश के विकास का आधार औद्योगिक विकास होता है जो अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करता है । कोयला और लोहा ऐसे दो उद्योग आधारभूत उद्योग हैं जिन पर अन्य उद्योग टिके होते हैं ।देश काल और परिस्थिति के अनुसार उद्योग के स्वरूप में परिवर्तन होते रहते हैं नए उद्योग स्थापित होते हैं पुराने उद्योग समाप्त हो जाते हैं या फिर समय के अनुसार अपने को परिवर्तित कर लेते हैं। औद्योगिक रुग्णता के अंतर्गत औद्योगिक इकाइयां उसी समय परिस्थिति और नवनिर्माण के दौर से गुजरने के क्रम में अपनी पुरानी स्थिति में बने रहते हुए अपने अस्तित्व को बचाने में सफल नहीं हो पाती हैं और रुग्ण  इकाइयों की श्रेणी में आ जाती हैं । यह स्थिति उनकी वर्तमान वर्ष में होती तो है ही साथ ही आने वाले वर्षों में भी इसकी संभावना बनी रहती है। सामान्य अर्थ में इसे ऐसे समझते हैं * ऐसी औद्योगिक इकाई जिसके current assets current liabilities   से कम रहे हैं। *जिसके current liabilities और curren...

उद्यमीय पर्यावरण

दोस्तों पिछले ब्लॉग में हमने उद्यमिता और उद्यमी के बारे में देखा अब उद्यमीय पर्यावरण  के बारे में बात करेंगे जिसके अंतर्गत एक उद्योग स्थापित होता है । किसी भी उद्योग को स्थापित करने के लिए प्रवर्तक के द्वारा यानी वह व्यक्ति जो उद्योग की सोच से लेकर उसको कार्यान्वित करने की स्थिति तक के लिए जिम्मेदार होता है यह काफी महत्वपूर्ण होता है कि उद्योग स्थापित करने के अनुकूल पर्यावरण है या नहीं । इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए हम लोग आगे उद्यमीय  पर्यावरण की चर्चा करेंगे चलिए देखते हैं उद्यमीय पर्यावरण के बारे में यह है क्या..  उद्यमीय  पर्यावरण की परिभाषा उद्यमीय पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है उद्यमीय और पर्यावरण.  उद्यमी का अर्थ है उद्यम से संबंधित जबकि पर्यावरण से तात्पर्य है मनुष्य जिस देश काल या परिस्थिति में जन्म लेता है और जीवन यापन करता है. रॉबिंस के अनुसार," पर्यावरण उन संस्थाओं या शक्तियों से बना होता है जो किसी संगठन के कार्य निष्पादन को प्रभावित करती हैं किंतु उस संगठन का उस पर बहुत कम नियंत्रण होता है". जोक एवं गुलिक के अनुसार ,"पर्यावरण में फर्म के ...