प्राय: वस्तुओं को बेचने के लिए विक्रय कर्ताओं द्वारा एक ही रास्ता अपनाया जाता है जैसे भावी ग्राहकों का पता लगाना, उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना, उनसे संपर्क करना और वस्तुओं को उनके समक्ष प्रस्तुत करना ,वस्तुओं की अच्छाइयों को बताना, ग्राहकों को यदि आपत्ति हो जाती है तो उसका समाधान करना और विक्रय करना। ये अवस्थाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई होती है इनको अलग-अलग पहचानना कठिन होता है।
संक्षेप में यदि हम कहें तो विक्रय प्रक्रिया की निम्न अवस्थाएं होती हैं
1 पूर्वेक्षण करना
2 पूर्व पहुंच
3 पहुंच एवं प्रस्तुतीकरण
4अभिनय
5 ट्रायल समाप्ति
6 आपत्तियों का निवारण
7 समाप्ति या समापन और
8 अनुगमन
1 पूर्वेक्षण करना
विक्रय प्रक्रिया की यह सबसे पहली अवस्था है । इसमें विक्रय करता है यह पता लगाता है कि उस वस्तु की आवश्यकता किन व्यक्तियों और संस्थाओं को है।वो वस्तु को खरीदने में समर्थ हैं या नहीं। इसका कारण यह है कि बिना आवश्यकता वाले या असमर्थ व्यक्तियों की ओर अधिक प्रयास करने में बिक्री में वृद्धि नहीं होती है विक्रय कर्ता का समय और परिश्रम व्यर्थ ही जाता है तथा उसको कोई आर्थिक लाभ भी नहीं होता है ।
2 पूर्व पहुंच
जब विक्रय करता को भावी ग्राहकों के नामों का पता लग जाता है तो विक्रय क्रिया की दूसरी अवस्था पूर्व पहुंच की जाए आ जाती है । इससे क्रेता के संबंध में साधारणतया उसके आयु ,आय ,परिवार ,मैत्री संबंध ,रुचि योजनाएं इन सब की सूचनाएं एकत्रित की जाती है। विक्रय कर्ता जब ऐसे ग्राहकों से मुलाकात करता है तो इन सारी चीजों को वह विक्रय करते समय ध्यान में रखता है ।ऐसे ग्राहकों से बातचीत वह उचित तरीके से करता है। उदाहरण के लिए यदि ग्राहक पढ़ा लिखा है तो विक्रय कर्ता का तरीका बिना पढ़े लिखे ग्राहक की तुलना में कुछ और ही प्रकार का होगा । इसी प्रकार यदि एक तकनीकी ज्ञान वाला ग्राहक होगा तो उसके साथ विक्रय कर्ता का व्यवहार दूसरा होगा।
3 पहुंच एवं प्रस्तुतीकरण
संभावित क्रेता का पता लगाकर व उसके बारे में सूचना प्राप्त कर इस बात की आवश्यकता होती है कि उस तक पहुंचा जाए और वस्तु को प्रस्तुत किया जाए क्रेता तक पहुंचने के बहुत से तरीके हैं जिसमें संदर्भ पहुंच, परिचय पहुंच,वस्तु पहुंच और उपभोक्ता लाभ पहुंच सम्मिलित है।
संदर्भ पहुंच के अंतर्गत उपभोक्ता पुराने ग्राहक का कोई पत्र यह नोट संभावित ग्रह के नाम से लिखा लेता है और फिर उसको लेकर वह उस संभावित ग्राहक के पास जाता है तो ऐसी पहुंच संदर्भ पहुंच कहलाती है
पूर्व परिचय पहुंच
जब विक्रय करता के पास संदर्भ के लिए कोई पत्र नहीं होता है तो वह इस तरीके को अपनाता है। इसमें विक्रय करता संभावित ग्राहक का अभिवादन कर अपना परिचय देता है और बताता है कि उसका नाम क्या है, वह किस कंपनी में काम करता है और किन वस्तुओं के लिए वह उसके पास आया है।
वस्तु पहुंच
इसमें विक्रय करता ग्राहक के पास पहुंचते ही अपनी वस्तु उसके सामने रख देता है जिससे ग्राहक विक्रय कर्ता की भावना को समझ लेता है ।
उपभोक्ता लाभ पहुंच
यह तरीका आमतौर पर विक्रेताओं द्वारा अपनाया जाता है । इसमें वस्तु से उपभोक्ता को क्या लाभ है इसकी जानकारी विक्रेता द्वारा उपभोक्ता को दी जाती है और इससे उस को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया जाता है।
4 अभिनय
इसमें ग्राहक के समक्ष एक नाटक जैसा अभिनय किया जाता है जिससे कि ग्राहक उसकी उपयोगिता से प्रभावित हो और वस्तु को क्रय करने के लिए लालायित हो जैसे जीवन बीमा का उद्देश्य जोखिम को सहन करना है जबकि बीमा कराने वाला बीमानदार ऐसा नहीं सोचता। वह तो अपने आप को निश्चित काल तक जीवित रहने की बात करता है ।वैसे ही समय बिमा कर्ता अपना नाटक खेलता है और अपने थैले में कुछ अखबारों के कटिंग निकालकर सामने रखता है और बताता है कि विवाहित नवयुवक की दुर्घटना में मृत्यु किस प्रकार उसके परिवार को अंधकार में डाल देती है यदि इस युवक ने अपना जीवन बीमा करा लिया होता
तो परिवार वालों को इतना धन अवश्य मिल जाता है कि वे अपने जीवन को उचित रूप से चला सकते।
5 ट्रायल समाप्ति
जब विक्रयकर्ता अपनी बात कह चुका होता है और वस्तु का प्रदर्शन भी कर चुका होता है तो उसे अब इस बात का पता लगाना है कि ग्राहक ने वस्तु खरीदने का निर्णय लिया या नहीं । कुछ ग्राहक ऐसे होते हैं जिनके विषय में पता नहीं चलता है क्योंकि वह उस वस्तु पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं देते। ऐसी स्थिति में विक्रय कर्ता को ऐसे प्रश्न करने पड़ते हैं जिससे पता लग सके कि ग्राहक क्रय करने को तैयार है या नहीं ।जैसे आपको कौन सा मॉडल पसंद है? आप किस रंग को पसंद करेंगे? आपके लिए कितनी इकाइयां पैक कर दूं आदि।
6 आपत्तियों का निवारण
जब ग्राहक वस्तु क्रय करने की स्थिति में नहीं होता या उसको वस्तु पसंद नहीं आती तो वह विभिन्न प्रकार की आपत्तियां उठा देता है। एक अच्छे एवं कुशल विक्रय कर्ता को आपत्तियों से घबराना नहीं चाहिए बल्कि अपने विक्रय कला का प्रदर्शन इन आपत्तियों को दूर करने में करना चाहिए जिससे कि ग्राहक नैतिक दृष्टि से दब जाए और क्रय करने का आदेश देदे।
7 समाप्ति या समापन
एक विक्रय करता द्वारा संभावित ग्राहक का पता लगाना उस तक पहुंचना वस्तु को प्रस्तुत करना आपत्तियों का निवारण करना आदि इस उद्देश्य से किया जाता है कि ग्राहक वस्तु को क्रय करने का आदेश दे दे और इस प्रकार विक्रय समाप्त कर दी जाए यदि किसी प्रकार विक्रय करता ग्राहक को संतुष्ट नहीं कर पाता तो वह आदेश भी प्राप्त नहीं कर सकता है और तब तक उसका सारा श्रम बेकार चला जाता है।
8 अनुगमन
विक्रय समाप्ति के पश्चात इस बात की आवश्यकता होती है कि ग्राहक का अनुगमन किया जाए। अनुगमन विभिन्न कारणों से किया जाता है जिसमें दो प्रमुख है एक ग्राहक को वस्तु उसके आदेश के अनुसार मिल जाए और दो ग्राहक संतुष्ट रहेगा तो भविष्य में आदेश मिलने की संभावना बनी रहेगी । समय-समय पर ग्राहकों से मिलते रहना अनुगमन नीति के अंतर्गत आता है ऐसा करते रहने से ग्राहक दूसरे विक्रेताओं की ओर आकर्षित नहीं हो पाता है और विक्रय कर्ता से ग्राहक संतुष्ट हो जाता है।
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