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भारत में लघु उद्योग

भारत में लघु उद्योग  मित्रों जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक विकासशील देश है जिसकी की बढ़ती आबादी को देखते हुए लघु एवं कुटीर उद्योगों का बेरोजगारी को दूर करने में महत्वपूर्ण स्थान रखा गया है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद औद्योगिकरण की बुनियाद  लोहा और कोयला जैसे खनिज संपदाओं पर निर्भर करता है जिसपर अन्य औद्योगिक ढांचे का निर्माण होता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात व्यापार और व्यवसाय में परिवर्तन होने से पाश्चात्य विदेशों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से हमारे संबंध बढे  लेकिन जो लघु और कुटीर उद्योग ग्रामीणों द्वारा अपनाए गए थे वह ज़मीनदोज हो गए। भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों के योगदान को नकारा  नहीं जा सकता है और वर्तमान समय में यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था की गतिशीलता  और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हम यहां यह जानने का प्रयास करेंगे कि लघु उद्योग होता क्या है ?इसकी परिभाषा क्या है? लघु उद्योग को परिभाषित करने के लिए 2 क्षेत्रों का चयन किया गया जिनमें निवेश को आधार मानकर  उनको वर्गीकृत किया गया- 1 सेवा क्षेत्र 2 निर्माण क्षेत्र 1 सेवा ...
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Mutual funds पारस्परिक निधियां

पारस्परिक निधि Mutual fund पारस्परिक निधि एक संस्था है जो वित्तीय मध्यस्थ की भूमिका निभाता है ।यह जनता के बचत को इकट्ठा कर कंपनियों के विभिन्न प्रतिभूतियों में इस प्रकार विनियोग करता है कि निवेशक को लगातार रिटर्न मिलता रहे और जोखिम भी कम हो । SEBIअधिनियम 1996 के अनुसार , "पारस्परिक निधि एक कोष है जो ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया जाता है ताकि वह जनता को इकाइयों को बेचकर मुद्रा अर्जित कर सके। वह एक या एक से ज्यादा स्कीमों के प्रतिभूतियों में  विनियोग  करें जिसमें मुद्रा बाजार भी शामिल है। " भारत में सबसे पहले 1964 में यूटीआई द्वारा पारस्परिक निधि का काम शुरू किया गया। पारस्परिक निधि को विनियोग ट्रस्ट, बनियोग कंपनी के रूप में भी जाना जाता है। इसे यूएसए में विनियोग ट्रस्ट कहा जाता है। निवेशकों के जरूरत के हिसाब से पारस्परिक निधियों को पांच भागों में बांटा गया है  1 स्वामित्व के आधार पर  इसमें सार्वजनिक क्षेत्र की पारस्परिक निधियां और निजी क्षेत्र की पारस्परिक निधियां शामिल होती हैं । 2 कार्य योजना के अनुसार  इसमें खुली अंतिम योजना ,बंद अंतिम योजना और अंतर योजना शाम...

विकास बैंक (Development Bank)

औद्योगिकरण के इस युग में उद्योगों को स्थापित करने और व्यवसाय विस्तार के लिए उन्हें आर्थिक सहायता की आवश्यकता होती है । इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पूंजी की व्यवस्था करना उद्योग जगत के लिए कठिन कार्य होता है । पूंजी की अल्पकालीन आवश्यकता की पूर्ति के लिए वह मुद्रा बाजार की सहायता लेते हैं और दीर्घकालीन पूंजी के लिए पूंजी बाजार पर निर्भर करते हैं फिर भी बिना बैंकिंग संस्थाओं के सहयोग के उद्योग जगत अपनी पूंजी की व्यवस्था नहीं कर पाता। इस दृष्टि t से बैंकों की महत्ता काफी बढ़ जाती है इस ब्लॉक में विकास बैंक की चर्चा करेंगे किसी भी देश के आर्थिक विकास में विकास में की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इस सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता है। विकास बैंक क्या होते हैं इसे देखते हैं विकास बैंक की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है विभिन्न विद्वानों द्वारा इसकी विशेषताओं को ही परिभाषित किया गया है अतः परिभाषा ओं के निष्कर्ष को ही प्रियता दी जाती है जो इस प्रकार है विकास बैंक ऐसे वित्तीय संस्थान है जो उद्योगों को स्थापित करने के लिए उन्हें व्यवसाय विस्तार के लिए मध्यकालीन और दीर्घकालीन ऋण प्रदान क...

leasing पट्टेदारी

 पट्टादारी  दो पक्षकारों के मध्य एक संविदा है जिसमें संपत्ति का स्वामी एक निश्चित समय अवधि के लिए अपनी संपत्ति को एक निश्चित किराए के बदले दूसरे पक्षकार को प्रयोग करने का अधिकार देता है। संपत्ति का स्वामी पट्टादाता और प्रयोग करने वाला पक्षकार पट्टाधारी कहलाता है ।  किराए की राशि मासिक त्रैमासिक छमाही या वार्षिक हो सकती है। पट्टे की अवधि पूर्ण होने पर संपत्ति को स्वामी को लौटा दिया जाता है या पुनः पट्टे का संविदा कर लिया जाता है। पट्टेदारी जो पुनः पट्टे के अंतर्गत आती है वह अल्पकाल के लिए होती है । दीर्घकालीन पट्टे के संविदा में पट्टाधारी पट्टे पर या तो काय करता है या नए सिरे से पट्टा करने का विकल्प रखता है।   पट्टे के प्रकार   1सेवा पट्टा या परिचालन पट्टा  यह अल्पकालीन पट्टा होता है जिसकी अवधि संपत्ति के जीवनकाल से कम होती है। संपत्ति के जीवन काल से पट्टे की अवधि कम होने के कारण इससे प्राप्त राशि द्वारा संपत्ति को अपलिखित नहीं किया जा सकता है परिणाम स्वरूप पट्टादता को निवेश की लागत और उस पर प्राप्त प्रत्याय के लिए या तो दोबारा पट्टा का संविदा करना पड़ता है ...

personal selling

पिछले ब्लॉग में हमने सेल्समैनशिप और सेलिंग प्रोसेस के बारे में जानना. इस ब्लॉग में हम पर्सनल सेलिंग यानी व्यक्तिगत विक्रय के बारे में जानेंगे.   पर्सनल सेलिंग होता क्या है  सामान्य अर्थ में पर्सनल सेलिंग से तात्पर्य व्यक्तिगत विक्रय से होता है. विभिन्न विद्वानों ने पर्सनल सेलिंग की परिभाषा इस प्रकार दी है  अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार," पर्सनल सेलिंग  वार्तालाप के माध्यम से विक्रय के उद्देश्य से क्रेता के समक्ष वस्तुओं और सेवाओं का एक मौखिक प्रस्तुतीकरण है. यह क्रेताओं की सहमति प्राप्त करने की योग्यता है जिससे एकओर क्रेता वस्तुओं और सेवाओं का लाभ ले सके तो दूसरी ओर विक्रेता को भी इसका फायदा हो.  Stanton के अनुसार ,"पर्सनल सेलिंग में व्यक्तिगत संचार द्वारा विक्रय को शामिल किया जाता है जो विज्ञापन के व्यक्तिगत संचार के तरीके, विक्रय संवर्धन और अन्य संचार उपकरणों के विपरीत होता है. निष्कर्ष   इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पर्सनल सेलिंग यानी व्यक्तिगत विक्रय  के अंतर्गत विक्रयकर्ता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों से संपर्क कर अपनी वस्तुओं को ग्राहक...

औद्योगिक इकाइयों का स्थानीयकरण

औद्योगिक इकाइयों के स्थानीयकरण का अर्थ  एक उद्यम के स्थानीयकरण से आशय औद्योगिक इकाइयों के किसी विशेष स्थान अथवा क्षेत्र की ओर आकर्षित एवं केंद्रित होने से है। यह वह स्थान या क्षेत्र है जहां पर औद्योगिक उत्पादन के विभिन्न साधन सुलभता से उपलब्ध होते हैं। उदाहरण के लिए भारत का सूती वस्त्र उद्योग मुंबई और अहमदाबाद में ही केंद्रित है क्योंकि वहां पर अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा सूती वस्त्र उत्पादन के विभिन्न साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। एक उद्यम के स्थानीयकरण की परिभाषा प्रोफ़ेसर डी एच रॉबर्टसन के अनुसार "विशेष क्षेत्र के उद्योगों के आकर्षित होने केंद्रित होने तथा पनपने की प्रवृत्ति को ही एक उद्यम का स्थानीयकरण करते हैं ।"  डॉक्टर पीएस लोकनाथन के अनुसार  "एक उद्यम के स्थानीयकरण से अभिप्राय विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों के केंद्रीय करण से है जो अंतरराष्ट्रीय पहलू से क्षेत्रीय श्रम विभाजन का लाता है।"  प्रोफेसर सुबीन के अनुसार " आदर्श उद्यम का स्थानीयकरण वही है जो वस्तु या सेवा के उत्पादन एवं वितरण की न्यूनतम प्रतीक आई लागत को संभव बनाता है"  एस्प्रिनगरल...

Approaches of selling process

  विक्रय प्रक्रिया के अंतर्गत विक्रय कर्ता द्वारा अपने ग्राहकों के लिए विभिन्न प्रकार के विक्रय दृष्टिकोण को अपनाना पड़ता है क्योंकि ग्राहकों की मनोंृतया ,स्वभाव, आय, रहन सहन सभी चीजों को विक्रय कर्ता  द्वारा ध्यान में रखना आवश्यक होता है। इनको देखते हुए हम पांच प्रकार के विक्रय दृष्टिकोण को अपना सकते हैं । 1 मित्र दृष्टिकोण  इस दृष्टिकोण के अंतर्गत संगठनात्मक संरचना में विपणन गतिविधियो में सहायता करने के लिए कम से कम 2 लोगों को एक साथ रखा जाता है जिनमें मैत्रीपूर्ण संबंध होते हैं और यह विपणन के काम को आसान बना देते हैं।  इसमें यह धारणा भी शामिल होती है कि कोई भी व्यक्ति अपने करीबी दोस्त के साथ ही व्यापारिक संबंध बनाना चाहता है जिसके बारे में वह व्यक्तिगत रूप से जानता है । संबंधों में किसी प्रकार का दिखावा हो तो यह विपणन कार्य में बाधक होता है । एक और चीज स्पष्ट करना अनिवार्य है कि विपणन कर्ता यदि व्यक्तिगत रूप से ग्राहकों के साथ संपर्क करता है तो उसमें मैत्रीपूर्ण आत्मीयता की भावना का होना अनिवार्य है । 2 समाधान दृष्टिकोण  इसके अंतर्गत विक्रय करता को ध्यान से ग...