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Showing posts from April, 2021

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India )

https://youtu.be/WqeXTGCRVB4 किसी भी अर्थव्यवस्था के मौद्रिक मौद्रिक संतुलन के लिए केंद्रीय नियंत्रण की आवश्यकता होती है। यह  नियंत्रण उस अर्थव्यवस्था के केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित होता है। यहां अर्थव्यवस्था से तात्पर्य किसी देश की भौगोलिक और राजनीतिक सीमा के अंतर्गत आने वाली अर्थव्यवस्था से है। भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारत के केंद्रीय बैंक की भूमिका निभाता है। इस ब्लॉक में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बारे में हम संक्षिप्त जानकारी लेंगे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 👍1913 चैंबर्लिन आयोग द्वारा भारत में केंद्रीय बैंक की सिफारिश की गई। 👍1927 हिल्टन यंग आयोग द्वारा भारत में केंद्रीय बैंक की सिफारिश की गई। 👍1933 गोलमेज सम्मेलन में भारत को राजनीतिक अधिकार के साथ-साथ केंद्रीय बैंक स्थापित करने का भी निर्णय किया गया। 👍1934 भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम पारित किया गया । 👍1935 रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को स्थापित किया गया पूंजी *शुरू में आरबीआई की पूंजी ₹5 करोड़ थी जो 100-100 रुपए के 500000 अंशों में  विभक्त थी।इसमें 40% के करीब...

currency manipulation (मुद्रा हेरफेर)

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में द्विपक्षीय सौदों के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसी मुद्राएं कठोर मुद्रा( Hard currency )की श्रेणी में आती हैं । कठोर मुद्राओं से आशय ऐसी मुद्रा से है जिसे क्रय कर किसी देश द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर के भुगतान में उपयोग किया जाता है ऐसी मुद्राएं कठिनाई से प्राप्त की जाती हैं। डॉलर उसी मुद्रा में से एक है यानी कठोर मुद्रा है जिसे अंतरराष्ट्रीय भुगतान के लिए प्रत्येक देश द्वारा अपने पास रखना होता है । बात करते हैं करेंसी मैनिपुलेशन की यानी मौद्रिक हेरफेर की     इसके अंतर्गत किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा कृत्रिम तरीके से अपने देश की मुद्रा का अवमूल्यन कर दिया जाता है जिससे विदेशी विनिमय बाजार में डॉलर की कमी दिखाकर अपने देश के निर्यात को बढ़ाया जा सके।   किसी देश द्वारा अपने मुद्रा के अवमूल्यन के पीछे एक कारण होता है निर्यात को प्रोत्साहन देना और आयात को हतोत्साहित करना । इसे ऐसे समझते हैं  अंतरराष्ट्रीय मुद्रा विनिमय बाजार में यदि आरबीआई यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारत का केंद्रीय बैंक रुपया को डॉलर क...

मौद्रिक नीति और आरबीआई के मौद्रिक नियंत्रण के उपकरण

भारतीय अर्थव्यवस्था में मौद्रिक प्रवाह और उसके  नियंत्रण का अधिकार देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ( RBI)को दिया गया है मौद्रिक और साख नियंत्रण का कार्य आरबीआई अपनी मौद्रिक नीति द्वारा तय करती है यह ब्लॉग आरबीआई के मौद्रिक नियंत्रण के उपकरण से संबंधित है आइए चर्चा करते हैं मौद्रिक नीति किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह का नियंत्रण जिस विधि द्वारा किया जाए मौद्रिक नीति कहलाती है।  मुद्रा के प्रवाह से तात्पर्य मुद्रा की मात्रा से है जो अर्थव्यवस्था में मौजूद करेंसी और साख की मात्रा से संबंधित होता है । किसी भी देश के आर्थिक विकास में उस देश के केंद्रीय बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उस देश के अंदर मुद्रा के प्रवाह के नियंत्रण का दायित्व भी उसी देश के केंद्रीय बैंक का होता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि मौद्रिक नीति से तात्पर्य देश के केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाए जाने वाले उन उपायों से है जिनके द्वारा अर्थव्यवस्था में करेंसी और साख की मात्रा को नियंत्रित किया जाता है. *साख यानी उधार देने का कार्य वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त करने के उद्देश...

भारत में बैंकिंग व्यवस्था का स्वरूप

पिछले  ब्लॉग में वाणिज्यिक बैंक के बारे में संक्षिप्त चर्चा की गई । वाणिज्यिक बैंक के पश्चात इस ब्लॉग में हम भारत में बैंकिंग व्यवस्था के स्वरूप की चर्चा करेंगे क्योंकि इसकी जानकारी के बिना अन्य जानकारियां अधूरी है। बैंकिंग स्वरूप को जानने के लिए हम इसे तीन काल खंडों में विभाजित करते हैं  1 स्वतंत्रता से पहले (1947 से पूर्व ) 2 स्वतंत्रता के पश्चात (1947 के बाद ) 3 वर्तमान स्वरूप 1 स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले (1947 के पूर्व) ए जेंसी हाउसेस की स्थापना आधुनिक बैंकिंग प्रणाली का पहला पड़ाव था ।यह अपने व्यवसाय के साथ-साथ जनता की जमानों को स्वीकार करते थे और जरूरत पड़ने पर जनता को यह व्यापार से संबंधित ऋण भी प्रदान करते थे ।शुरू में इन हाउसेज के पास पूंजी की कमी थी लेकिन धीरे-धीरे पूंजी बढ़ने के कारण इनके स्वरूप में परिवर्तन हुआ जिससे संयुक्त पूंजी वाले बैंकिंग प्रणाली का जन्म हुआ। * उसके पश्चात तीन प्रेसिडेंसी बैंकों की स्थापना हुई जो आधुनिक बैंक थे  1806 बैंक ऑफ कोलकाता ,कोलकाता  1840 बैंक ऑफ़ मुंबई ,मुंबई  1843 बैंक ऑफ़ मद्रास ,मद्रास * यह बैंक ईस्ट इंडिया कंपनी ...

वाणिज्यिक बैंक एवं उसके कार्य

 आज हम भारत में बैंकिंग व्यवस्था के अंतर्गत वाणिज्यिक बैंक की बात करेंगे लेकिन उसके पहले बैंक शब्द के बारे में, बैंकिंग के बारे में संक्षिप्त जानकारी ले  लेते हैं बैंक शब्द की उत्पत्ति बैंक शब्द की उत्पत्ति इटालियन भाषा के Banco शब्द से हुई है फ्रांसीसी इसे Banke कहने लगे और आगे चलकर अंग्रेज Bank कहकर संबोधित करने लगे। Bank शब्द की उत्पत्ति कहीं से भी हुई हो लेकिन इसकी उत्पत्ति यूरोपीय शब्द से ही मध्यकालीन यूरोप में हुई है। बैंक की परिभाषा सामान्य अर्थ में बैंक एक ऐसी संस्था है जो low rate of interest जमा स्वीकार करती है और high rate of interest  साख का सृजन करती है यानी उधार देती है।  अर्थात वह संस्था जो मुद्रा जमा के रूप में स्वीकार करती है और साख सृजन का कार्य करती है कहलाती है बैंक की परिभाषा विभिन्न विद्वानों द्वारा अलग-अलग तरह से दी गई है परंतु हम यहां विशेषकर भारत के संदर्भ में इसकी परिभाषा को देखेंगे जो भारतीय बैंकिंग अधिनियम के अंतर्गत परिभाषित है बैंकिंग कंपनी अधिनियम 1949 के अंतर्गत बैंकिंग कंपनी वह कंपनी है जो बैंकिंग का कार्य करती है । बैंकिंग से तात्पर्...

क्या है औद्योगिक रुग्णता (industrial sickness )

इस ब्लॉग में हम महत्वपूर्ण टॉपिक औद्योगिक रुग्णता के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेंगे तो चलिए देखते हैं औद्योगिक रुग्णता के बारे में- किसी भी देश के विकास का आधार औद्योगिक विकास होता है जो अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करता है । कोयला और लोहा ऐसे दो उद्योग आधारभूत उद्योग हैं जिन पर अन्य उद्योग टिके होते हैं ।देश काल और परिस्थिति के अनुसार उद्योग के स्वरूप में परिवर्तन होते रहते हैं नए उद्योग स्थापित होते हैं पुराने उद्योग समाप्त हो जाते हैं या फिर समय के अनुसार अपने को परिवर्तित कर लेते हैं। औद्योगिक रुग्णता के अंतर्गत औद्योगिक इकाइयां उसी समय परिस्थिति और नवनिर्माण के दौर से गुजरने के क्रम में अपनी पुरानी स्थिति में बने रहते हुए अपने अस्तित्व को बचाने में सफल नहीं हो पाती हैं और रुग्ण  इकाइयों की श्रेणी में आ जाती हैं । यह स्थिति उनकी वर्तमान वर्ष में होती तो है ही साथ ही आने वाले वर्षों में भी इसकी संभावना बनी रहती है। सामान्य अर्थ में इसे ऐसे समझते हैं * ऐसी औद्योगिक इकाई जिसके current assets current liabilities   से कम रहे हैं। *जिसके current liabilities और curren...

परियोजना

 पिछले ब्लॉग में परियोजना निर्माण के बारे में परियोजना के बारे में  चर्चा कर रहे थे। इस ब्लॉग में हम परियोजना क्या है इसका संक्षिप्त परिचय देख लेते हैं और परियोजना के वर्गीकरण ,परियोजना के कौन कौन से चरण हैं उसके बारे में और परियोजना चक्र के बारे में जानेंगे तो चलिए शुरू करते हैं परियोजना के बारे में। परियोजना किसी भी कार्य को व्यवस्थित तरीके से संपादित करने के लिए उसका विश्लेषण कर उसकी रूपरेखा तैयार करना ताकि पूर्व निर्धारित उद्देश्य को पूरा किया जा सके परियोजना कहलाती है।  सरकार द्वारा या किसी व्यवसायिक संगठन द्वारा किसी खास उद्देश्य से किए जाने वाले कार्य के लिए एक रूपरेखा तैयार की जाती है जिसके उद्देश्य निश्चित होते हैं और समयावधि और स्थान सभी निश्चित होते हैं। विभिन्न विद्वानों द्वारा परियोजना को इस प्रकार परिभाषित किया गया है  जे प्राइस गिटिन्जर के अनुसार परियोजना लाभ प्राप्त करने के लिए संसाधनों के उपयोग में शामिल गतिविधियों का समूह है. क्लिफोर्ड के अनुसार प्रयोजना एक अनियमित दिनचर्या वाली जटिल गतिविधि है जिसे संसाधनों में लगी निश्चित राशि और एक नि...

परियोजना निर्माण और परियोजना प्रतिवेदन

मित्रों पिछले ब्लॉग में हमने उद्यमिता विकास कार्यक्रम के बारे में जाना। उद्यमिता विकास कार्यक्रम के पश्चात एक बात स्पष्ट करना अनिवार्य हो जाता है कि किसी भी उद्योग को स्थापित करने के लिए उसकी रूपरेखा का तैयार होना आवश्यक होता है वह रूपरेखा प्रोजेक्ट या परियोजना कहलाती है अब प्रश्न है परियोजना क्या है?  किसी भी कार्य को व्यवस्थित तरीके से करने के लिए उसे अच्छी तरीके से संपादित करने के लिए उसका विश्लेषण ,उस में आने वाली कठिनाइयों का अध्ययन, उसे सुगमता पूर्वक संचालित करने के तरीके और समय अवधि  इन सभी चीजों के बारे में जानना आवश्यक होता है  उससे लिए  एक रूपरेखा तैयार की जाती है.  ठीक उसी प्रकार से पिरयोजना किसी भी उद्योग को स्थापित करने के लिए वैज्ञानिक आधार पर विकसित किया गया प्रारूप होता है जो निश्चित अवधि में निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए तैयार किया जाता है. इसी से मिलता-जुलता है एक और प्रश्न है  परियोजना निर्माण क्या है? परियोजना निर्माण परियोजना विचार का सुव्यवस्थित विवरण होता है जिसमें परियोजना के विभिन्न घटकों का मूल्यांकन किया जाता है जिससे ...

उद्यमिता विकास कार्यक्रम

भूमिका किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का विकास उद्योग पर आधारित होता है यानी उद्योग अर्थव्यवस्था की धुरी  है जिसके चारों तरफ औद्योगिक गतिविधियां घूमते रहते हैं।लेकिन इन गतिविधियों को नित्य निरंतर बनाए रखने के लिए उद्यमियों का निरंतर विकास होना और नए उद्यमी पैदा होना आवश्यक होता है। किसी भी देश की सरकार द्वारा इस प्रकार के उद्यमियों को जो पहले से ही अस्तित्व में है और जो  नए व्यक्ति उद्यमी के रूप में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं उनके लिए उद्यमिता विकास से संबंधित कार्यक्रम चलाया जाते हैं। इस ब्लॉग में हम  उद्यमिता  विकास कार्यक्रम के बारे में जानेंगे . उद्यमिता विकास कार्यक्रम को जानने से पूर्व संक्षेप में  उद्यमिता विकास को जान लेते हैं यह है क्या.? उद्यमिता विकास एक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्तियों को व्यावसायिक अनिश्चितताओं के बीच निर्णय लेने और जोखिम उठाने के लिए तैयार किया जाता है. उद्यमी बनाए जाते हैं- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि उद्यमी के बारे में बताती है कि उद्यमी पैदा होते हैं जो अपनी सोच समझ अपने अनुभव से वातावरण के बाहरी और भीतरी  घटक के अनुसार व्यावसायिक नि...

उद्यम का प्रवर्तन

भूमिका उद्यमिता और उद्यमी को जानने के पश्चात अब प्रश्न यह उठता है कि उद्यम को स्थापित कैसे किया जाए ? जहां उद्यम स्थापित करने की बात आती है तब विचारों के सृजन से लेकर विभिन्न विचारों में से किसी एक विचार का चयन कर उसको कार्यान्वित रूप देने तक की समस्त क्रिया ही उद्यम की स्थापना से संबंधित होती हैं। हमने पिछले ब्लॉक में उद्यमिता और उद्यम से संबंधित बातों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी ली। इस ब्लॉग में उद्यम की स्थापना और उससे पूर्व की क्रिया- विधियों  के बारे में जानकारी लेंगे । यह क्रियाविधि प्रवर्तन कहलाती है । अब प्रश्न उठता है  "प्रवर्तन क्या है" आइए देखते हैं - प्रवर्तन की परिभाषा  प्रो. ई एस मेड के अनुसार "प्रवर्तन में चार तत्व निहित होते हैं खोज, जांच, एकत्रीकरण और व वित्त."  गुथमैन और डूगल के अनुसार "प्रवर्तन उस विचारधारा के साथ आरंभ होता है जिससे किसी व्यवसाय का विकास किया जाना है और इसका कार्य कब तक चलता रहता है जब तक कि वह व्यवसाय एक चालू संस्था के रूप में अपना कार्य पूर्ण रूप से आरंभ करने के लिए तैयार नहीं हो जाता है."   ...