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Showing posts from May, 2021

जोखिम पूंजी Venture Capital

साहस पूंजी    Venture capital साहस पूंजी दो शब्दों से मिलकर बना है साहस और पूंजी।साहस  का अर्थ जोखिम उठाना होता है और पूंजी का अर्थ संसाधनों में लगे कोषों से है ।  इस प्रकार साहस पूंजी का तात्पर्य किसी उद्योग में नई परियोजना के शुरू करने हेतु कोषों के प्रवाह से है जिस पर प्राप्त लाभ और हानि की संभावना अनिश्चितता ओं से भरी होती हैं।  एक उद्योग को लगाने के लिए या नई  कंपनी की स्थापना के लिए या मौजूद उद्योग में नई परियोजनाओं पर काम करने के लिए जोखिम पूंजी की आवश्यकता होती है जिसे प्राप्त करना उद्यमी के लिए काफी कठिन कार्य है ।यह पूंजी निवेशकों के लिए जोखिम के साथ अप्रत्याशित लाभ या हानि से जुड़ा होता है। साहस पूंजी का अधिकतर भाग सामान्य अंश द्वारा प्राप्त किया जाता है पूंजी का कुछ भाग ही ऋणों से प्राप्त होता है । साहस पूंजी को सृजनात्मक पूंजी भी कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा आर्थिक क्रियाओं का सृजन किया जाता है ऐसी संभावना व्यक्त की जाती है । इसके उपयोग हेतु काफी चतुराई की आवश्यकता होती है। किसी कंपनी के दीर्घकालीन जीवन के लिए जोखिम पूंजी के उपयोग की आवश्यकत...

Capital Market

Capital Markets (पूंजी बाजार ) वित्तीय बाजार का वह भाग जिसमें मध्यम अवधि और दीर्घ अवधि के प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय होता है पूंजी बाजार कहलाता लाता है।  पूंजी बाजार के माध्यम से सरकार ,निजी निगम अपने दीर्घकालीन और मध्यकालीन पूंजी की व्यवस्था करते हैं इस पूंजी की पूर्ति व्यापारिक बैंक, एलआईसी ,जीआईसी, आईडीबीआई ,आईएफसीआई ,आईसीआईसीआई ,यूटीआई इत्यादि जैसी संस्थाओं द्वारा की जाती है। ये संस्थाएं पूंजी बाजार में प्रतिभूतियों में जनता के पैसे को निवेश करती हैं और इन प्रतिभूतियों के माध्यम से सरकार और निजी निगम औद्योगिक ढांचे को मजबूत करते हैं और उद्योग धंधे स्थापित करते हैं, उत्पादन का कार्य करते हैं।  मुद्राबाजार और पूंजी बाजार में अंतर (Difference between money market and capital market)  *मुद्रा बाजार अल्पकालीन पुरुषों का बाजार होता है जबकि पूंजी बाजार मध्यकालीन और दीर्घकालीन कोसों का बाजार होता है । *मुद्रा बाजार में ट्रेजरी बिल जमा प्रमाण पत्र वाणिज्य कागज पत्र आदि का प्रयोग किया जाता है यानी इन्के माध्यम से लेनदेन का कार्य होता है जबकि पूंजी बाजार में अंशु पत्र ऋण पत्र ग...

Money Market

 Money Market मुद्रा बाजार  (मुद्रा बाजार का अर्थ, मद्रा बाजार की विशेषताएं, मुद्रा बाजार के कार्य,मुद्रा बाजार के अंग) मुद्रा बाजार का अर्थ  वित्त बाजार का वह भाग जहां अल्पकालीन प्रतिभूतियों का लेनदेन होता है या अल्पकालीन परिसंपत्तियों का क्रय विक्रय होता है मुद्रा बाजार कहलाता है।   मुद्रा बाजार की विशेषताएं  *मुद्रा बाजार एक अल्पकालीन बाजार होता है जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम की होती है। * इसमें अल्पकालीन ऋण ओं का लेनदेन होता हैः  * इसमें अल्पकालीन ऋण के लिए जिन प्रतिभूतियों या परिसंपत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है उनके अलग-अलग उप बाजार होते हैं। * यह उद्योगों को कार्यशील पूंजी के लिए धन प्रदान करता है। *अल्पकालीन ऋण की अवधि 14 दिन 91 दिन और 364 दिन तक के होते हैं। * मुद्रा बाजार एक ऐसा बाजार होता है जिसके माध्यम से अधिशेष धन घाटे वाले क्षेत्रों में जाते हैं ताकि अस्थाई तरलता के संकट से निपटा जा सके।  *भारत में दो मुद्रा बाजार केंद्र कोलकाता और मुंबई में है जिन्हें नेशनल मनी मार्केट कहा जाता है।अबअहमदाबाद का स्थान आ रहा है। *इस बाजार में दलाल का कोई यो...

वित्तीय बाजार ( Financial Market)

वित्तीय बाजार (Financial Market) सामान्य अर्थ में बाजार से तात्पर्य स्थान विशेष पर क्रेता विक्रेता का इकट्ठा होना और वस्तुओं का क्रय विक्रय करना है लेकिन इन बाजारों की तरह वित्त बाजार का कोई स्थान नहीं होता। इसमें वे सभी क्षेत्र शामिल किए जाते हैं जहां वित्तीय परिसंपत्तियों का लेनदेन यानी क्रय विक्रय होता है। वित्तीय परिसंपत्तियों के अंतर्गत निम्न चीजें आती हैं ऋण और जमा शेयर ,बाँण्ड, सरकारी प्रतिभूतियां ,बिल, चेक आदि। वित्तीय बाजार की विशेषताएं *वित्तीय बाजार का संबंध अन्य बाजारों की तरह किसी निश्चित क्षेत्र से नहीं होता यह व्यापक क्षेत्र होता है *वित्तीय बाजार में परिसंपत्तियों में अल्पकालीन परिसंपत्तियों और दीर्घकालीन कालीन परिसंपत्तियों का क्रय विक्रय होता है या लेनदेन होता है। *वित्तीय बाजार कोषों के मांग और पूर्ति में संतुलन से संबंधित होता है। * इस बाजार में तरलता और सुरक्षा पर ध्यान दिया जाता है। वित्तीय बाजारों का वर्गीकरण वित्तीय बाजाार को दो भागों बाटा जाता है   1संगठित बाजार   2 असंगठित बाजार  1संगठित बाजार  इसमें उन वित्तीय संस्थाओं को शामिल किया जाता ह...

AIIB 2015

Asian Infrastructure Investment Bank (एशियन इन्फ्राट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक) चीन के पहल से एशिया प्रशांत क्षेत्र में एक बहुउद्देशीय विकास बैंक की शुरुआत की गई जिसका लक्ष्य क्षेत्र में आधारभूत संरचनाओं का विकास करना और सदस्य देशों का विकास करना था ।  एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक के तर्ज पर इसे स्थापित किया जाना था जिसे ऑफीशियली तौर पर दिसंबर 2015 में स्थापित किया गया। इसकी व्यवसायीक  शुरुआत जनवरी 2016 में हुई। Head quarter (हेड क्वार्टर)  बीजिंग चीन Goals (लक्ष्य) एशिया प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के  आधारभूत संरचनाओं का विकास करना और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना। Priorities (प्राथमिकता) ऊर्जा विद्युत उत्पादन, यातायात ,व्यापारिक वस्तुओं के आवागमन के लिए क्षेत्रीय आधारभूत संरचना का विकास और पर्यावरण संरक्षण । Initial Capital (प्रारंभिक पूंजी ) 100 ट्रिलियन डॉलर जिसमें 20% राशि  paidup है और 80% called up है। इसमें चीन का वोटिंग शेयर 30 बिलियन डॉलर का है उसके बाद भारत का 6.8 बिलीयन डॉलर है  है उसके बाद रूस का है  बाकी में अन्य देश...

NABARD 1982

NABARD 1982  National Bank for Agriculture & Rural Development राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक *1979  आरबीआई द्वारा एक कमेटी का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष श्री बी शिवरामन थे। * 1981 संसद द्बारा नाबार्ड के गठन  का अनुमोदन किया गया । *12 जुलाई 1982 नाबार्ड अस्तित्व में आया । *स्थापना के समय प्रारंभिक पूंजी    100 करोड़ रुपए थी। *31 मार्च 2019 तक  चुकता पूंजी       12500 करोड़ रूपए है। *प्रबंधक संचालन कुल सदस्य   15  जिसमें  अध्यक्ष  1   एमडी 1  *दोनों का कार्यकाल 5 वर्ष है। राज्य सरकारों के संचालक   4  केंद्र सरकार के संचालक   3  व्यापारिक बैंक के संचालक     1  राज्य सरकारी बैंक के संचालक     2  रिजर्व बैंक के संचालक        3  *इन सब की अवधि 3 वर्षों के लिए होती है। नाबार्ड के वित्त के स्रोत  अंश पूंजी, रिजर्व और फंड्स, बॉड्स, डिवेंचर ,विशेष कोष जमाए उधार और देयताएं।   कार्य *ग्रामी...

EXIM BANK- 1982

एक्सिम बैंक 1982    भारत सरकार ने भारत से निर्यात बढ़ाने के लिए और देश के विदेशी व्यापार और निवेश एकीकृत रूप से संचालित करने के लिए EXIM BANK की स्थापना की थी। * यह भारत के बाहर विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण संस्था के रूप में कार्यरत है। *यह एक ऐसी संस्था है जो एक्सपोर्ट इंपोर्ट से संबंधित  भारतीय लघु और मध्यम उद्योगों की भागीदारी में प्रमुख भूमिका निभाता है। *इसकी स्थापना के लिए भारतीय संसद द्वारा 1981 में एक बिल पारित किया गया। * 1982 में इसकी स्थापना हुई और मार्च 1982 से इसने  कार्य करना शुरू किया। * प्रधान कार्यालय   मुंबई * स्थापना के समय  अधिकृत पूंजी 500 करोड़ रूपये *संचालक मंडल के कुल निर्देशकों की संख्या 12  जिसमें  * भारत सरकार के उच्च अधिकारी 5 *अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक के निर्देशक 3  *उद्योग ,/व्यापार विशेषज्ञ 4  *आरबीआई, आईडीबीआई, ईसीजीसी लिमिटेड द्वारा मनोनीत सदस्य 3 वित्तीय उत्पाद - क्रेता ऋण ,विदेश निवेश वित्त, ऋण व्यवसाय, कारपोरेट बैंकिंग  *वित्तीय वर्ष 2019 -20 में कर पश्चात लाभ में वृद्धि 51.22%...

Administered Interest Rates in India

भारत में प्रशासित ब्याज दरें  (Administered Interest Rates in India) आर्थिक विकास में प्रशासित ब्याज दरों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जो मुद्रा की आपूर्ति और उसके साख से संबंधित होती है।  कहने का अर्थ है ब्याज दरें अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के मौद्रिक नीति से संबंधित होती हैं जबकि प्रत्यक्ष रूप से आरबीआई इस को प्रभावित करता है।  यह दरें बचतों को प्रभावित करती हैं उसे प्रोत्साहित करती हैं और विनियोग को एक नई दिशा देती हैं जिनसे औद्योगिकरण की प्रक्रिया तेज होती है।  इन दरों के घटने या बढ़ने से मौद्रिक तरलता पर प्रभाव पड़ता है जो अर्थव्यवस्था के मौद्रिक आपूर्ति को समय-समय पर समायोजित करती हैं। भारत में प्रशासित ब्याज दरों के नियमन के कारण (Causes of regulated administered rates in India) मुख्य कारण  *बचत को प्रोत्साहित करना जिससे पूंजी निर्माण के लिए पर्याप्त राशि अर्थव्यवस्था को मिल सके। * बचत के महत्वपूर्ण हिस्से को प्राथमिक क्षेत्र की ओर प्रवाहित करना जिससे सामुदायिक कल्याण का कार्य किया जा सके। (प्राथमिक क्षेत्र -कृषि परिवहन लघु उद्योग इत्यादि)  *अर्थव्यवस्...

SIDBI 1990

SIDBI  भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक *स्थापना और कार्य प्रारंभ  1990 *इसने आईडीबीआई बैंक के स्वामित्व के आधीन सहायक बैंक के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया। *यह भारत सरकार वित्त मंत्रालय के अंतर्गत संचालित होता है। * इसका मुख्य कार्यालय लखनऊ में है । *आरबीआई द्वारा इसका विनियमन और पर्यवेक्षण किया जाता है  उद्देश्य  *राज्यों में विशेषकर पिछड़े क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर औद्योगिक विकास करना। *औद्योगिक उपक्रम (सूक्ष्म लघु और मध्यम )का प्रवर्तन करना और उनके प्रबंधन से संबंधित सलाह देना  *उपक्रमों को वित्तीय सहायता प्रदान करना । *औद्योगिक उपक्रमों के लिए आधारभूत सहायता जैसे भवन ,विद्युत, संयंत्र ,प्लांट ,मशीनरी आदि की व्यवस्था देना । *नए उद्यमियों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करना। * नयी परियोजनाओं पर विचार कर उसे वित्त प्रदान करना। प्रबंध   इस निगम की स्थापना कंपनी अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत कुछ हद तक हुई है फिर भी कुछ राज्यों में विधान मंडल द्वारा विशेष बिल लाकर इसे राज्य स्तरीय वैधानिक दर्जा दिया गया है । राज्य स्तरीय संस्था का पूर्ण स्वामित्व राज्यों...

भारतीय औद्योगिक विनियोग बैंक ( IIBI 1971)

  भारतीय औद्योगिक विनियोग बैंक इतिहास   *1971 में भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व के अंतर्गत भारतीय पुनर्निर्माण निगम लिमिटेड के नाम से स्थापित किया गया जिसका उद्देश्य तकनीकी और प्रबंधकीय क्षमता के कारण बंद होने वाली औद्योगिक इकाइयों का पुनर्निर्माण करना था । *1985 में इसे भारतीय पुनर्निर्माण बैंक के नाम से पुनर्गठित किया गया। *1997 में इसे भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक लिमिटेड का नाम दे दिया गया। *2005 में IIBI को IDBI में विलय पर विचार किया गया लेकिन IIBI द्वारा इंकार कर दिया गया । *2006 -07 मे भारत सरकार द्वारा इसे बंद करने का निर्णय लिया गया । *2012 में भारत सरकार द्वारा इसे बंद कर दिया गया । *मुख्य कार्यालय  -कोलकाता  *अधिकृत पूंजी  - ₹1000 करोड़ रुपए  कार्य   *बीमार औद्योगिक इकाइयों का उत्थान करना  *उद्योगों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करना  *औद्योगिक इकाइयों के विकास विस्तार और नवीनीकरण के लिए वित्तीय सहायता देना  *लिविंग और मर्चेंट बैंकिंग के कार्य करना  *पूंजी बाजार से ऋण प्राप्त करना  *उद्योगों को तकनीकी एवं प्रबंध...

IDBI- 1964

IDBI भारतीय औद्योगिक विकास बैंक परिचय   *आईडीबीआई की स्थापना 1964 में संसद द्वारा एक बिल पारित कर की गयी। *इस पर भारत सरकार का स्वामित्व है । *वर्तमान में कुल हिस्सेदारी का 77% भाग भारत सरकार के पास है। इतिहास   *आईडीबीआई की स्थापना एक औद्योगिक विकास संस्थान के रूप में भारत सरकार द्वारा आईडीबीआई एक्ट 1964 के अंतर्गत की गयी। * यह 2004 तक एक विकास बैंक के रूप में कार्यरत रहा । *2004 में ही इसे बैंक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। * यह लोक वित्त संस्थान के रूप में संबंधित था जो कंपनी अधिनियम 1956 के प्रावधानों के मुताबिक कार्यरत था।  *प्रारंभ में यह रिजर्व बैंक की सहायक संस्था के रूप में कार्यरत था। *1975 में इसे आरबीआई से अलग कर दिया गया । *1976 में यह एक स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था के रूप में भारत सरकार के अधीन पुनर्गठित किया गया। उद्देश्य आईएफसीआई, आईसीआईसीआई, आईआरसीआई एलआईसी, यूटीआई ,एसबीआई राष्ट्रीय कृत बैंकों के कार्यों को समन्वित करना ,उनका नियमन करना और उनके कार्यों का पर्यवेक्षण करना । कार्य *औद्योगिक उपक्रमों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करना । *औद्योगिक विकास में प्...

ICICI - 1955

  ICICI- भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम स्थापना  जनवरी 1955  उद्देश्य      *निजी क्षेत्र में लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों के विकास के लिए ऋण प्रदान करना । *उद्योगों की स्थापना और पुराने उद्योगों के विस्तार के लिए ऋण प्रदान करना । नोट    इसे 1955 में एक निजी सीमित कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था। * रिटेल बैंकिंग क्षेत्र में निजी क्षेत्रों द्वारा भारत में कार्य शुरू करने के लिए 1955 में आवेदन किए गए थे जिसमेंICICI भी शामिल थ। इस प्रकार ICICIबैंक की स्थापना भी की गई । *1 अप्रैल 1996 को SCICI यानी शिपिंग क्रेडिट एंड इन्वेस्टमेंट कंपनी ऑफ इंडिया का ICICI में विलय कर दिया गया। *2002 में आईसीआईसीआई का आईसीआईसीआई बैंक में विलय कर दिया गया जो अब विकास वित्त संस्थान नहीं है । आईसीआईसीआई बैंक *स्थापना   1994 *प्रधान कार्यालय   मुंबई  *संचालक मंडल के सदस्य  14  जिसमें से एक की नियुक्ति वाणिज्य मंत्रालय द्वारा की जाती है।   कार्य *निवेश बैंकिंग से संबंधित कार्य *बंधक संपत्तियों पर ऋण प्रदान करना *निजी बैंकि...

वित्तीय मध्यस्थ (financial intermediary)

पिछले ब्लॉग में हमने वित्तीय प्रणाली के बारे में संक्षिप्त अध्ययन किया था । जिसमें वित्तीय प्रणाली के महत्वपूर्ण घटकों के बारे में चर्चा की गई थी। इस ब्लॉग में हम वित्तीय प्रणाली के महत्वपूर्ण घटक को में से एक वित्तीय मध्यस्थ के बारे में चर्चा करेंगे। वित्तीय मध्यस्थ   वित्तीय मध्यस्थ बचतकर्ता और निवेशकों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं । वित्तीय मध्यस्थ में वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक, ऋण समितियां, बीमा कंपनियां और अन्य वित्तीय संस्थाएं शामिल है। वित्तीय मध्यस्थों का मुख्य कार्य प्राथमिक प्रतिभूतियों को द्वितीयक प्रतिभूतियों में बदलना है। प्राथमिक प्रतिभूतियां ये प्रतिभूतियों प्रत्यक्ष रूप से जनता को निर्गमित किए जाते हैं इसमें कंपनी जनता से सीधे संपर्क स्थापित करती है।  द्वितीयक प्रतिभूतियां जो प्रतिभूतियां वित्तीय मध्यस्थों द्वारा जनता को जारी  की जाती है उनसे जिस कोष का निर्माण होता है उनको विभिन्न कंपनियों के प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है यानी उन कोषो से विभिन्न कंपनियों के शेयर ,बॉन्ड्स, ऋण पत्र का क्रय होता है।  उदाहरण के लिए जनता द्वारा ...

वित्तीय प्रणाली (Financial System)

पिछले ब्लॉग में हमने विकास बैंक के बारे में जाना। विभिन्न प्रकार के विकास बैंकों के बारे में विस्तार से चर्चा आने वाले ब्लॉक में होगी। इस ब्लॉग में हम वित्तीय प्रणाली की संक्षिप्त चर्चा करते हैं। बैंक वित्तीय प्रणाली के महत्वपूर्ण घटकों में से एक हैं । अतः वित्तीय प्रणाली की जानकारी आवश्यक है।  हम जानते हैं कि वित्त अर्थव्यवस्था की धुरी होती है जिसके चारों और आर्थिक क्रियाएं चक्कर लगाती हैं । इन आर्थिक क्रियाओं में वित्त यानी फंड की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसके द्वारा आर्थिक क्रिया संपन्न होती हैं । फंड का सृजन और इसके उपयोग वित्त की महत्वपूर्ण विशेषता होते हैं । इसके सृजन और उपयोग के लिए एक प्रणाली होती है जिसमें तीन लोग मुख्य भूमिका निभाते हैं जमाकर्ता, निवेशक और मांगकर्ता। इस प्रकार  वित्तीय प्रणाली वह प्रणाली होती है जो  जमाकर्ता ,निवेशकर्ता ,मांगकर्ता के बीच फंड्स का आवागमन कराती है। इसमें बहुत सी संस्थाएं सम्मिलित होती हैं जो समाज के बचत को इकट्ठा कर गतिमान करती हैंऔर विनियोग के लिए वित्तीय सेवाएं मुहैया करती हैं। वित्तीय प्रणाली की विशेषता ☺यह अर्थव्...